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अहर्निशः प्रतीक्षेsहं तव कृते ..

अहर्निशः प्रतीक्षेsहं तव कृते .. न जातु आगच्छसि मे निकटे ।1। किम् अहमेव प्रेमं करोमि वा? तव सहस्र प्रतिज्ञा भूत्वा न वा ? ।2। अधुना त्वमेव विस्मरसि किमर्थम मे किन्तु मयि त्वम् निवसति हृदये ।3। केशाः तस्यां सुन्दर छटा .. प्रतियति यदृशी मेघःघटा ।4। नेत्रनो अधितिष्ठति कामकला .. भाषणि विलक्षण कला ..।5। अधुना त्वदीयः अश्मा हृदयं .. पूर्वं तव घनीभूत हिमम् .।6। गजगामिनि तव उन्मादीमे .. तत्क्षणं तव विस्मर्य मे ..।7। मन्युना प्रतियति पाटल कलिका .. च यदा हसति तव आदीनाः ।8। अन्ते नेति - नेति वद मे ... तव मयि कृते सर्वश्वमे .।9। अहर्निशं प्रतीक्षेsहं तव कृते .. अधिक्षिप्ति त्वं मयि न वा ??।10। ©®आचार्य चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

।। बिछुड़न ।।

मिलना भी जरूरी था . बिछुड़ना भी जरूरी था मैंने प्यार के मायने समझने थे... तुम्हारे लिए ऐश्वर्य जरुरी था .। ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

महामिलन

उर में एक स्मृतियों का महल बनाया ... एक सुन्दर नगर और स्वप्नमय जीवन बसाया... स्वयं तो छोड़ गए उस महल को ... फिर मुझ में महामिलन क्यों जगाया ।। ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

मुक्तक

चलो नई दुनियां बसाते हैं .... सपनों के बाराती सजाते हैं ... चलो यहाँ से उम्र भर के लिए ... चलो तुम को जीवन का सार बताते हैं ,। ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना/पंकज/माणिक्य

हिन्दी भारत माँ के भाल की बिन्दी ...

कुमाऊनी भाषा मेरी जान छ ... और हिन्दी मेरी शान छ ... तुम तें इंग्लिश में खिटर-पिटर कर छा ... मैं कें त अपणी भाषा ज्ञान छ ...। ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

हिन्दी भारत माँ के भाल में बिन्दी

हिन्दी दिवस पर कविताएँ इंग्लिश में गाई जाती हैं ... दोस्तों को शुभकामनाएँ रोमन में दी जाती हैं ... दिन एक भी हम हिन्दी शुद्ध नहीं बोल सकते हैं ... हम अपने ही देश में कई जगह हिंदी नहीं बोल सकते हैं ...,  वाक्य भी हम से बिन इंग्लिश नहीं बोले जाते हैं  यहाँ हिन्दी कवि भी मंच पर इंग्लिश में दो चार गाली दे आते हैं .... जो कहते हैं हमारी हिन्दी नहीं महान है ... नहीं पता मुझे ...जो बोलता उसे हिंदी का कुछ ज्ञान है ... जो रोमन बोल-बोल कर खुद को सभ्य समझते हैं ... नोटों के बण्डल को जो जीवन का सार समझते हैं .., उनको नहीं पता निज भाषा का गौरव कितना विस्तृत फैला है ... निज धरा में होता अपमान ..फिर क्यों विश्व में सम्मानित फैला है ., रंग बिरंगी कविताओं से सजी पुस्तकें कुछ फुटकर में बिकती ... रोमन का अश्लील साहित्य हम को  जीवन में करने को जँचता ... हम उत्साह हीन कवि , धन देख भागते हैं ... जो जान गया निज भाषा का गौरव ... वो सोया भाग्य जगते हैं., कुछ क्रन्तिकरी लोगों ने . इस भाषा के ख़ातिर बलिदान दिया ... हम ने निज स्वार्थ के लिए ...उस बलिदान को जाया किया ..., निज भाषा को गौरव से बोला

मिलने आ नहीं सकती ..मुक्तक ।।

है खुद पानी में ...        नदी भी रो नहीं सकती ... है आई याद तेरी ...         ये ऑंखें सो नहीं सकती ... सुना है उस को भी ...             शुकून नहीं है बिन मेरे ... वो फिर भी मिलने ..              मुझसे आ नहीं सकती ।। ©®चंद्र प्रकाश बहुगुणा / माणिक्य / पंकज

प्यार ।। मुक्तक

प्यार में मिलना जरुरी था .. और बिछुड़ना भी जरूरी था ... कैसे मैं खुद को भूल जाता ... तुम भी जरुरी थी मैं भी जरुरी था ... चंद्र प्रकाश बहुगुणा / माणिक्य / पंकज

तू भी जग रही है ।। मुक्तक

रात अब चारों तरफ से घिरने लगी है .. इस दिल को तुम्हारी यादों आने लगीं हैं .. तेरे फेसबुक स्टेट्स पढ़ कर लगा मुझे ... तू भी मेरी याद में अब तक जगी है ।। ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / माणिक्य / पंकज

।। प्यार ।। मुक्तक

दिल मेरा तोड़ कर तुम भी क्या पाओगे , मैं तो दूसरी पटा लूंगा तुम किधर जाओगे , मैं तुम से अब भी कहता हूँ सुन लो... फिर तुम याद करती फिरोगी कि तुम कब आओगे ।। ©®चंद्रप्रकाश बहुगुना/ पंकज / माणिक्य

नारी एक .... रूप अनेक

जब बेटी होती है तो .. घर में खुशियाँ बसती है जब पत्नी होती है ..उस में अन्नपूर्णा दिखती है .. जब माँ होती है तो ... माँ की छाँव में सारी खुशियाँ लगती हैं और फिर दादी,नानी बनती हैं फिर भी ना जाने लोग क्यों मार देते हैं इन को वो नारी ही है जो इतने रूपों में दिखती है ।। ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

माँ

बच्चों के रोने में माँ भी रो देती है .. बच्चे बड़े होते हैं तो बस माँ रोती है सब इस धरा में स्वार्थ के रिश्ते हैं ... बस एक माँ ही धरा में देवता होती है ।  ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

।। जन्मदिन की शुभकामनाएं ।।

                       ।।1।। हर्ष,उत्कर्षमय जीवन .. जीवन हो चंदनवन उपवन ... लाखों दुआएं हो साथ तुम्हारी ... नवचेतनमय मधुमास हो जीवन ...।।                      ।। 2 ।। नवदिवस नवचेतन लाये जीवन में . दुःख दूर और खुशियां आये जीवन में ... जीवन का हर पल हर्ष, उत्कर्षमय हो ... मेरा बस चले तो खुशियों की बौछार कर दूँ जीवन में ।।                       ।।   3   ।। जन्मदिन हो आपका ख़ुशियों से परिपूर्ण । हर दिवस हर मास हो मधुमास । जीवन आपका हर्ष,उत्कर्ष , कीर्ति , तरक्की से हो परिपूर्ण । तरक्की आपकी दिन रात हो यही हमारी आश। जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं ।। चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

मुक्तक || दर्द ||

दोस्तों जिन्दगी एक बार पाई है ... वो वादा कर के भी मिलने नहीं आई है ... मैं मनाता रहा उसे ताउम्र जाम-ए-प्यार के लिए .. वो आज मेरे कब्र में फूल लाई है ...।। (सुना है आज मेरे जनाजे में वो भी आई है ) ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

।। तुम ।।

रंगे ग़ुलाब सी तुम ... सपनों का सरताज़ सी तुम ... मैं यों ही सो जाना चाहता हूँ .. जब से सपनों में आई हो तुम .... ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

।। नन्ही चिड़ियाँ का लक्ष्य ।।

नन्हीं चिड़ियाँ .       चढ़ती जीवन की सीढ़ियां , पर फैलती बार-बार ...       कोशिश करती कई बार , माँ पर पकड़ कर उड़ना सिखाती ...         गिर कर फिर उठना सिखाती , नन्हें परों को वो सहलाती ..          थक जाने पर उसे सुलाती , नित होता यह व्यापार ...             माँ का रहता उस में प्यार , कई रोज घायल होता है ...              कई रोज रोकर सोता है , पर कोशिश करता है ...               जीवन पथ पर चलता है , और एक रोज वह जीतता है ...               और परिश्रम से लक्ष्य पता है .। ©®  चंद्रप्रकाशबहुगुना / माणिक्य/ पंकज             

मुक्तक

                   ।।  1 ।। मरना और जीना मेरे हाथ में नहीं ... तुम थी अपनी पर साथ में नहीं                       मरने के बहाने लाख हैं मगर ..                       जीने का एक ... बहाना नहीं ।।                               ।।   2  ।। तुम कहती थी हमारा प्यार अनोखा होगा .. दुनियाँ में हीर - रांझा से भी सच्चा होगा .. मैं तो तुम को हम समझ बैठा था .... क्या खबर थी प्रेम डोर इतना कच्चा होगा । ©®चंद्रप्रकाश बहुगुना/ पंकज/ माणिक्य

कृष्ण जी

हर डाली हर पत्ते कण-कण में जनों के उर कंठ मन-मन में मुझे तू ढूढ़ता मन्दिर में मैं ही तो हूँ इस सुबह -रात्रि में । कृष्ण रहते अभी भी भक्त उर में .. कहीं गुरु कहीं माँ-बाप में ... तुम्ही में हूँ तुम्हारे रोम  में .. फिर क्यों ढूढ़ता तू पत्थर में । ©चंद्रप्रकाश/पंकज/माणिक्य बहुगुना

मुक्तक

नहीं नहीं तुम सही हो । और तुम वही हो । मैं फ़लक में चाँद ढूढ़ता हूँ ...। तुम चाँद वही हो ।। चंद्र प्रकाश बहुगुना / माणिक्य / पंकज

।। तुम अगर साथ होती ।।

जिन्दगी हँसी होती ..अगर तुम साथ होते ... आँखों में यों अश्क ना होते ..अगर तुम साथ देते .. तुम अपनी ज़िद में ना होती ...मैं अपनी ज़िद में ना होता ... ना हम यों मजबूर होते .. ना यों दूर होते ... चंद्र प्रकाश बहुगुना /पंकज/माणिक्य

।। दिल वार आया हूँ । । मुक्तक ।।

कोई बस्ती बदल आया , कोई मकान बदल आया ... उसने एक बार क्या माँगा मैं दिल वार आया  ., मुझे इन अल्लाह और भगवान में मत बाटो .. मैंने इन्सान का दर्द देखा ..मैं इन्सान बन आया .... चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

अधिक आसक्ति मनुष्य के लिए विष है ..

अधिक आसक्ति मनुष्य के लिए विष है ...ये पंक्ति लिखते लिखते मेरी कलम रुक गई ...फिर फेसबुक का खाता खोल कर कुछ मनोरंजन करने का मन किया ... कुछ समय से मैं भी फेसबुक पर सक्रिय हूँ किंतु यहाँ सक्रिय होने का फ़ायदा भी कुछ नहीं है सब लोग अपनी दुकान चमकाने में लगे हैं कई इसे भी धर्म या जाति का अखाड़ा या फिर  अधिक उम्र के वृद्धों के कमेंट पढ़ कर हँस पड़ता हूँ क्योंकि पुत्री समान नव युवती पर आसक्ति पूर्ण कमेन्ट करते हैं ....जय हो ऐसी जवानी को । मुझे और चीजो से इतना फ़र्क नहीं पड़ता है किन्तु ये तो असहनीय होता है कि एक 50-60 वर्ष का व्यक्ति एक 18-30 वर्ष की युवती की छवि या मुख्य पृष्ट में अशक्ति पूर्ण कमेंट करें ..., कमेंट करना कोई गलत नहीं किन्तु आसक्ति पूर्ण सर्वथा अनुचित ही जान पड़ता है ...क्योंकि अगर वो खुद चरित्रवान नहीं बन पाये तो क्या आप सोचते हैं कि अगली पीढ़ी सभ्य या संस्कृतवान होगी मुझे तो नहीं लगता है और वो अपने बच्चों को क्या सीख देते होंगे नहीं पता । इस लिए अधिक आसक्ति सही नहीं है आसक्ति करो किन्तु अपनी पत्नी बच्चों से स्वजनों से ... और हम जैसे युवकों को भी उपदेश देते हुए भी ऐसे ही वृद्ध

  ।। सत्ताधारी सास ।।

    ।। सत्ताधारी सास ।। नाम सुन कर लग रहा होगा कि इस टॉपिक में भी लिखने के लिए कुछ बचा है क्या ? सब जानते हैं इस शब्द के मर्म को , चाहे वो भारतीय पुरुष हो या महिला । इस शब्द के मर्म को शायद ही कोई ना जानता हो , लेकिन हमारे उत्तराखंड में विशेष कर पहाड़ी तो सास का मुँह देख कर भी क्याप चिताते हैं और इसके अर्थ में जो मर्म एक बहु एक जँवाई समझता है शायद ही कोई और समझता हो ये मेरा मानना है । कभी सास भी बहू थी टाईप के आदर्शों से काफी अच्छी कहानी होती है यहाँ घर-घर की । यहाँ यह वक्त हर किसी के साथ आता है पर जो भी हो मस्त ठहरा ... सास का सुबह-सुबह बहू को नौला भेजना बहू का कई बार खुंदक में आना और उसी दौरान अपनी नव विवाहित सहेलियों से चुगला करना एक आदर्श ही प्रतीत होता है जिस की एक छोटी सी झलक रेखांकित करने की कोशिश - किले तू के तेर सास कतुक बजी उठे दें ? भगुली सची जे कअ कै छी तो तीन बाजी बटिक उठ रइ । किले की करेंछि उबख़त बटिक ? किले कतुक काम हुनि पैली पाणि गरम करो सौर क नवा सास क बिस्तर में चाहा पिनक अमल छ उनन क चहा दे ,फिर उ बजर पड़ी रो गोठ में भैसक धिंगाडक दूद ह्त्या  ल्याई , तिहार दिन छा

हम ही से प्यार करती हो

हम ही पर जान छिड़कते हो हम ही से नैन चुराते हो .. खुद ही तो बोलने को कहती हो .. खुद ही चुप करती हो ...। खुद ही तो हम से रूठती हो ... खुद ही तो मान जाती हो ... हम ही से प्यार करती हो .. हम ही से दूरी चाहते हो । तुम ही तो ज़िद में रहती हो .. तुम ही तो ज़िद भूल जाती हो .. तुम ही तो शिकवे रखती हो ... तुम ही तो मुझे भूल जाती हो । खुद ही तो गले लगाती हो .. खुद ही आँहे भारती हो .. मुझी से प्यार चाहती हो ... मुझी से नफ़रत करती हो  । चंद्र प्रकाश बहुगुना /माणिक्य /पंकज

परुली

डान कानन घाम आ गो ... उठ जा हो परुली ... बिस्तरमें चहा ल्या रई ... उठ जा हो परुली ... चंद्र प्रकाश बहुगुना/माणिक्य / पंकज

रह-रह कर तुम्हारी याद आ जाती है

रह-रह कर तुम्हारी याद आ जाती है हर बार तुम्हारी बात याद आ जाती है । जब तुम को नहीं प्यार था मुँझसे तो ... क्यों मेरी सपनों में आ जाती हो ? तुम्हारा क्या हूँ नहीं जनता मैं ... फिर भी तुम्हारी याद आ जाती है. ऐ चन्दर वो खुस रहे बस यही है ख़्वाब मेरा ... उसी की खुसी में खुसी मेरी आ जाती है. चंद्रप्रकाशबहुगुना/पंकज/माणिक्य

ये लोग

आज कितने मतलबी हो गए लोग ..., खुद के स्वार्थ के लिए जान ले रहें हैं लोग .. जिन्दा रहते-रहते कांटे बोते हैं लोग ... मर जाने पर पुष्पों की माला लेकर आते हैं लोग । सफलता चरण चूमे तो जलते हैं लोग ... असफलता का मुहँ देखना पड़े तो जलते हैं लोग ... प्यार में पड़ने पर पागल कहते हैं लोग .. घ्रणा करने पर जानवर समझते हैं लोग ..। जिंदगी मौज़ से काटने को बेइमानी कहते हैं लोग ... धनहीन होने पर भिकारी कहते हैं लोग ...। जिन्दा रहते - रहते याद नहीं करते लोग ...। मारने के बाद श्रद्धांजली देने आते हैं लोग ..। चंद्र प्रकाश बहुगुना /माणिक्य /पंकज

मुक्तक

फाल्गुन में यह मधुमास आया .. संग खुसी, होली , वसन्त संग लाया ... प्रेमी निमग्न हैं प्रेम में मदन संग .. बिरही मन यादों को संग लाया ।

मुक्तक

घनीभूत हृदय में चित्र तुम्हारा बन आया है .. तभी पानी बन आँखों से आया है ... और वो तपन अब भी ... हर महामिलन में बाधा बन आया है ।

शायरी

गली की उस खिड़की से आज चाँद निकल आया ..., ये मिजाज-ए- इश्क मुझे ही नहीं पूरी गली को भाया ।

रिश्ते

आप को किसी से प्यार हो गया हो और आप उसी के साथ जिंदगी भी बिताना चाहते हैं तो कुछ बातों का ध्यान रखें क्योंकि आप का प्यार अंध हो सकता है आप नहीं । क्योंकि आप ने उस के साथ जिंदगी बितानी है,तो हर पक्ष से सोचें और परीक्षण भी करें बार बार कि हम एक लंबे सफर को एक साथ तय कर पाएंगे या नहीं ? 1-अच्छी सोच वाला हो/वाली हो  । जिंदगी का सफर अच्छा चाहते हैं तो अच्छे सफर के लिए साथी अच्छा होना बहुत जरूरी होता है और बात जब जिंदगी के सफर की हो तो और भी ज्यादा जरूरी । अच्छी सोचा का पता तभी चलेगा जब आप एक दूसरे को टाइम देंगे , क्योंकि अल्पकालीन वार्ता से किसी की सोच का पता नहीं लगया जा सकता है । 2 - आप पर विस्वास करता हो / करती हो एक अच्छे रिश्ते के लिए एक दूसरे पर विश्वास होना भी जरुरी है । यह प्यार करने वालों के लिए दूसरा कदम होगा । क्योंकि विश्वास अगर आप नहीं करते हैं तो वो रिश्ता शायद कुछ और हो प्यार नहीं हो सकता है । 3-उसकी नजरों में आपके लिए सम्मान हो आपकी भावनाओं की कद्र करता हो /करती हो तो वो बेस्ट है। क्योंकि अगर आप एक बंधन में बधना चाहते हैं तो एक दूसरे का सम्मान करें । और एक दूसरे की भा

।। बस एक ब्यूटीफुल पर्सनल वाइफ चाहिए ।।

ना खटर पटर ना ही सटर पटर ... ना चटर बटर ना ही दुकान की कोई मटर ...., और ना दहेज़ का मैटर ना ही लव लैटर .., बस एक ब्यूटीफुल पर्सनल वाइफ चाहिए ।। ना मन्त्रों का झमेला ..ना जाती धर्म का मेला । ना ही गहनों का ठेला ..ना बाराती ना वो मेला .. ना ही कोई गुरु ना चेला ...ना बैंड ना दिखावट का रेला ..., बस एक ब्यूटीफुल पर्सनल वाइफ चाहिए ।। ना कोट सूट .... ना नोट बूट .,                                        ना जंग संग  .....ना ही कोई लूट , ना रिश्तों की दिखलावट ... ना ही झूट- मूट , ना गाड़ी ना बंगला ... गाड़ी का कोई रूट-सूट..., बस एक ब्यूटीफुल पर्सनल वाइफ चाहिए ।। ना लोचा ना सोचा ... ना अच्छा ना मैं लुच्चा .. ना गली गली का आशिक मैं टुच्चा .., आना कमाता ढाई का खर्चा ..., ना चाँद साँद ना बदल बन गरजा .., बस एक ब्यूटीफुल पर्सनल वाइफ चाहिए ।। गली गली में ढूढ़ा ...ना जाने रब रूठा .. कभी पापा मम्मी .. कभी दादा दादी .. कभी मामा मामी ... कभी नाना नानी .. दे दे कर उत्तर अब  दिल टुटा ... बस एक ब्यूटीफुल पर्सनल वाइफ चाहिए ।। काली पीली .... उजली कुछ बंदरिया सी ... गुस्से से पीली पीली ... खुस

।। एक दिन का हल्ला ना हो दोस्ती के नाम पर ।।

।। एक दिन का हल्ला ना हो दोस्ती के नाम पर ।। एहसास ये  एहसास है ...        दोस्ती एक एहसास है ... सुख में हँसी ...             दुःख में आस है , दोस्ती एहसास है ।। धूप में बरसात है ...           चाँदनी वो रात है ... एक खुली किताब है ...           खुशियों की बारात है ...    दोस्ती एहसास है ।। दिल का अरमान है ...           दोस्ती एक सम्मान है ... कोयल की मधुर तान है ...            जिन्दगी की शान है ...      दोस्ती एहसास है ।। दिन एक में ना बाँध इसको ....         ये जीवन का साथ है ... मुझे तब कोई गम नहीं है ...        जब दोस्त मेरे साथ है .,         दोस्ती एहसास है ।। पत्थरों सा दिल पिघलता ..         दोस्ती के नाम पर , एक दिन का हल्ला ...       ना कर दोस्ती के नाम पर ..,       दोस्ती एहसास है ।। हम एक और एक साथ हैं ,                 चाहे दूर या पास हैं , दोस्ती तो दिल में बसती ,                दोस्तों के हर पल पास हैं ।         दोस्ती एहसास है ।। चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य