आमावस के बाद अब चाँद दिखने लगा था । मैं अपने कर्मों में रोने लगा था । जाना चाहता हूं मैं पास उसके , जो नामुमकिन है ! तब मैं रो पड़ता हूं , मेरी व उसकी कुछ याद हैं चाँद में , तारे मुझे उकसाते हैं , मिलन का तरीक़ा बताते हैं । कि रो मत रोना कायरता है , फिर सोचता हूं कब अमावस आये । कब मुझे तेरी याद र आये , मैं देखे बिना नहीं रह सकता तुझे , कण-कण में महसूस करता तुझे । तू चाँद नहीं दगाबाज़ है , मैं तेरा दाग़ी चेहरा कैसे भूलूं । जो मेरे ही सामने लगा था , करूँ तो क्या करूँ ? तुम बिन ना लागे जिया , मेरा तू ही मर्ज़ है । तुझे मिलने में क्या हर्ज़ है ? जो तेरे लाखों मुझ पर कर्ज़ हैं , इसलिए भूल नहीं सकता मेरा फ़र्ज़ है । मेरा दम घुट न जाये , अमावस चाहता हूं । मैं बेडियों में बँधा हूं , तू खुली पतंग है । ना तू ये आज़ादी छोड़ सकता है , मेरे लिए । और न में इन बेडियों से । रोऊ भी तो कैसे , दाग़ दामन में गिरे । मुझे सबसे उजियारा तू लगता , सूरज भी फीका - फीका लगता । जैसे निश निशा होती प्रबल , मैं रो पड़ता हूं । कुछ सुकून होता है , इस मासूम दिल में । तुझे कोई और पुकारे तो , बड़ा
मेरे अनुभव एवं इस समाज की स्थिति का वर्णन किया गया है ।