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सितंबर, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अहर्निशः प्रतीक्षेsहं तव कृते ..

अहर्निशः प्रतीक्षेsहं तव कृते .. न जातु आगच्छसि मे निकटे ।1। किम् अहमेव प्रेमं करोमि वा? तव सहस्र प्रतिज्ञा भूत्वा न वा ? ।2। अधुना त्वमेव विस्मरसि किमर्थम मे किन्तु मयि त्वम् निवसति हृदये ।3। केशाः तस्यां सुन्दर छटा .. प्रतियति यदृशी मेघःघटा ।4। नेत्रनो अधितिष्ठति कामकला .. भाषणि विलक्षण कला ..।5। अधुना त्वदीयः अश्मा हृदयं .. पूर्वं तव घनीभूत हिमम् .।6। गजगामिनि तव उन्मादीमे .. तत्क्षणं तव विस्मर्य मे ..।7। मन्युना प्रतियति पाटल कलिका .. च यदा हसति तव आदीनाः ।8। अन्ते नेति - नेति वद मे ... तव मयि कृते सर्वश्वमे .।9। अहर्निशं प्रतीक्षेsहं तव कृते .. अधिक्षिप्ति त्वं मयि न वा ??।10। ©®आचार्य चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

।। बिछुड़न ।।

मिलना भी जरूरी था . बिछुड़ना भी जरूरी था मैंने प्यार के मायने समझने थे... तुम्हारे लिए ऐश्वर्य जरुरी था .। ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

महामिलन

उर में एक स्मृतियों का महल बनाया ... एक सुन्दर नगर और स्वप्नमय जीवन बसाया... स्वयं तो छोड़ गए उस महल को ... फिर मुझ में महामिलन क्यों जगाया ।। ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

मुक्तक

चलो नई दुनियां बसाते हैं .... सपनों के बाराती सजाते हैं ... चलो यहाँ से उम्र भर के लिए ... चलो तुम को जीवन का सार बताते हैं ,। ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना/पंकज/माणिक्य

हिन्दी भारत माँ के भाल की बिन्दी ...

कुमाऊनी भाषा मेरी जान छ ... और हिन्दी मेरी शान छ ... तुम तें इंग्लिश में खिटर-पिटर कर छा ... मैं कें त अपणी भाषा ज्ञान छ ...। ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

हिन्दी भारत माँ के भाल में बिन्दी

हिन्दी दिवस पर कविताएँ इंग्लिश में गाई जाती हैं ... दोस्तों को शुभकामनाएँ रोमन में दी जाती हैं ... दिन एक भी हम हिन्दी शुद्ध नहीं बोल सकते हैं ... हम अपने ही देश में कई जगह हिंदी नहीं बोल सकते हैं ...,  वाक्य भी हम से बिन इंग्लिश नहीं बोले जाते हैं  यहाँ हिन्दी कवि भी मंच पर इंग्लिश में दो चार गाली दे आते हैं .... जो कहते हैं हमारी हिन्दी नहीं महान है ... नहीं पता मुझे ...जो बोलता उसे हिंदी का कुछ ज्ञान है ... जो रोमन बोल-बोल कर खुद को सभ्य समझते हैं ... नोटों के बण्डल को जो जीवन का सार समझते हैं .., उनको नहीं पता निज भाषा का गौरव कितना विस्तृत फैला है ... निज धरा में होता अपमान ..फिर क्यों विश्व में सम्मानित फैला है ., रंग बिरंगी कविताओं से सजी पुस्तकें कुछ फुटकर में बिकती ... रोमन का अश्लील साहित्य हम को  जीवन में करने को जँचता ... हम उत्साह हीन कवि , धन देख भागते हैं ... जो जान गया निज भाषा का गौरव ... वो सोया भाग्य जगते हैं., कुछ क्रन्तिकरी लोगों ने . इस भाषा के ख़ातिर बलिदान दिया ... हम ने निज स्वार्थ के लिए ...उस बलिदान को जाया किया ..., निज भाषा को गौरव से बोला

मिलने आ नहीं सकती ..मुक्तक ।।

है खुद पानी में ...        नदी भी रो नहीं सकती ... है आई याद तेरी ...         ये ऑंखें सो नहीं सकती ... सुना है उस को भी ...             शुकून नहीं है बिन मेरे ... वो फिर भी मिलने ..              मुझसे आ नहीं सकती ।। ©®चंद्र प्रकाश बहुगुणा / माणिक्य / पंकज

प्यार ।। मुक्तक

प्यार में मिलना जरुरी था .. और बिछुड़ना भी जरूरी था ... कैसे मैं खुद को भूल जाता ... तुम भी जरुरी थी मैं भी जरुरी था ... चंद्र प्रकाश बहुगुणा / माणिक्य / पंकज

तू भी जग रही है ।। मुक्तक

रात अब चारों तरफ से घिरने लगी है .. इस दिल को तुम्हारी यादों आने लगीं हैं .. तेरे फेसबुक स्टेट्स पढ़ कर लगा मुझे ... तू भी मेरी याद में अब तक जगी है ।। ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / माणिक्य / पंकज

।। प्यार ।। मुक्तक

दिल मेरा तोड़ कर तुम भी क्या पाओगे , मैं तो दूसरी पटा लूंगा तुम किधर जाओगे , मैं तुम से अब भी कहता हूँ सुन लो... फिर तुम याद करती फिरोगी कि तुम कब आओगे ।। ©®चंद्रप्रकाश बहुगुना/ पंकज / माणिक्य

नारी एक .... रूप अनेक

जब बेटी होती है तो .. घर में खुशियाँ बसती है जब पत्नी होती है ..उस में अन्नपूर्णा दिखती है .. जब माँ होती है तो ... माँ की छाँव में सारी खुशियाँ लगती हैं और फिर दादी,नानी बनती हैं फिर भी ना जाने लोग क्यों मार देते हैं इन को वो नारी ही है जो इतने रूपों में दिखती है ।। ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

माँ

बच्चों के रोने में माँ भी रो देती है .. बच्चे बड़े होते हैं तो बस माँ रोती है सब इस धरा में स्वार्थ के रिश्ते हैं ... बस एक माँ ही धरा में देवता होती है ।  ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

।। जन्मदिन की शुभकामनाएं ।।

                       ।।1।। हर्ष,उत्कर्षमय जीवन .. जीवन हो चंदनवन उपवन ... लाखों दुआएं हो साथ तुम्हारी ... नवचेतनमय मधुमास हो जीवन ...।।                      ।। 2 ।। नवदिवस नवचेतन लाये जीवन में . दुःख दूर और खुशियां आये जीवन में ... जीवन का हर पल हर्ष, उत्कर्षमय हो ... मेरा बस चले तो खुशियों की बौछार कर दूँ जीवन में ।।                       ।।   3   ।। जन्मदिन हो आपका ख़ुशियों से परिपूर्ण । हर दिवस हर मास हो मधुमास । जीवन आपका हर्ष,उत्कर्ष , कीर्ति , तरक्की से हो परिपूर्ण । तरक्की आपकी दिन रात हो यही हमारी आश। जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं ।। चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

मुक्तक || दर्द ||

दोस्तों जिन्दगी एक बार पाई है ... वो वादा कर के भी मिलने नहीं आई है ... मैं मनाता रहा उसे ताउम्र जाम-ए-प्यार के लिए .. वो आज मेरे कब्र में फूल लाई है ...।। (सुना है आज मेरे जनाजे में वो भी आई है ) ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

।। तुम ।।

रंगे ग़ुलाब सी तुम ... सपनों का सरताज़ सी तुम ... मैं यों ही सो जाना चाहता हूँ .. जब से सपनों में आई हो तुम .... ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

।। नन्ही चिड़ियाँ का लक्ष्य ।।

नन्हीं चिड़ियाँ .       चढ़ती जीवन की सीढ़ियां , पर फैलती बार-बार ...       कोशिश करती कई बार , माँ पर पकड़ कर उड़ना सिखाती ...         गिर कर फिर उठना सिखाती , नन्हें परों को वो सहलाती ..          थक जाने पर उसे सुलाती , नित होता यह व्यापार ...             माँ का रहता उस में प्यार , कई रोज घायल होता है ...              कई रोज रोकर सोता है , पर कोशिश करता है ...               जीवन पथ पर चलता है , और एक रोज वह जीतता है ...               और परिश्रम से लक्ष्य पता है .। ©®  चंद्रप्रकाशबहुगुना / माणिक्य/ पंकज             

मुक्तक

                   ।।  1 ।। मरना और जीना मेरे हाथ में नहीं ... तुम थी अपनी पर साथ में नहीं                       मरने के बहाने लाख हैं मगर ..                       जीने का एक ... बहाना नहीं ।।                               ।।   2  ।। तुम कहती थी हमारा प्यार अनोखा होगा .. दुनियाँ में हीर - रांझा से भी सच्चा होगा .. मैं तो तुम को हम समझ बैठा था .... क्या खबर थी प्रेम डोर इतना कच्चा होगा । ©®चंद्रप्रकाश बहुगुना/ पंकज/ माणिक्य

कृष्ण जी

हर डाली हर पत्ते कण-कण में जनों के उर कंठ मन-मन में मुझे तू ढूढ़ता मन्दिर में मैं ही तो हूँ इस सुबह -रात्रि में । कृष्ण रहते अभी भी भक्त उर में .. कहीं गुरु कहीं माँ-बाप में ... तुम्ही में हूँ तुम्हारे रोम  में .. फिर क्यों ढूढ़ता तू पत्थर में । ©चंद्रप्रकाश/पंकज/माणिक्य बहुगुना

मुक्तक

नहीं नहीं तुम सही हो । और तुम वही हो । मैं फ़लक में चाँद ढूढ़ता हूँ ...। तुम चाँद वही हो ।। चंद्र प्रकाश बहुगुना / माणिक्य / पंकज