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आतंकी

कश्मीर जो मेरी कल्पना में है । एक दहसद का राज्य जहाँ अभी भी आजादी नहीं है हिन्दुओं को बोलने की और मुस्लिमों को आतंकी हमलों देश को बर्बाद करने और सब्सिडी पर पूर्ण अधिकार है । कश्मीर ही क्या ? पूरे देश के हालात ऐसे हैं । भाई मैं मानवता की बात करता हूँ लेकिन कब तक ? लेकिन मेरे लिए मानवता सर्वोपरि होगा । मैं हर रोज उस स्वर्ग को गुंडागर्दी का अड्डा बनता देखता हूँ न्यूज में , अख़बारों में । कब तक मेरे देश के नौजवान आतंकवादी बनते रहेंगे । और कब तक Burhan Muzaffar Wani जैसे लोग देश को बर्बाद करते रहेंगे । मैं ये भी नहीं कहता कि देश को तोड़ने का काम केवल मुस्लमान करते हैं वो कई हिन्दू भी हैं लेकिन उनको सुनने वाला कौन है ...? हिंदुओं के पास अपना विवेक होता है ना कि एक फ़तवे को आँख मूद कर मान लें । और मुझे अचम्भा होता है लोग बिना सोचे समझे उसके पीछे पीछे चलते हैं और दूसरों को मारने तक में नहीं चूकते मैंने कभी कुरान पढ़ी नहीं लेकिन मुहम्मद साहब ने ये तो कहीं नहीं लिखा होगा कि दूसरों को मार कर जन्नत मिलेगी .. मैं किसी के धर्म की अवहेलना नहीं कर रहा हूँ ..। और ना ही मेरा ऐसा मन है । लोग कहते हैं

फेसबुक

फेसबुक !      विचारों का अड्डा .      सन्त , ज्ञानियों का ..       राजनीती , चमचों का ..      दुकानदारों का ...      प्रेम , धोखे का .     धर्म , कट्टरता का ..     अड्डा आशिकों का ...     फ़रेब का , टाइम पास का ..     कवियों का , लेखकों का ..      सलाहकारों का ..     गुंडों , मुस्टंडों का ...     नक़ाब , असत्य का ..      झूठ , तारीफों का ..    ना जाने किस किस का ..?       अड्डा है भाई .. धन्य हो जुकरबर्ग...       यहाँ लोग मुखौटो लिए घूमते हैं ..        तुम ने एक मुखौटा और दिया ..।      माणिक्य बहुगुना / पंकज / चंद्र प्रकाश   

आपदा

कहर !        प्रकृति का या मानव का प्रकृति पर ? कौन निश्चित करेगा ? कौन मरेगा , कौन बचेगा ..?       पर्वत खोद कर बेच डाले ..       जंगल जला खाक कर डाले । सोचता हूँ मैं सुखी रहूँगा किसी को मारकर .. नहीं मिलेगा तुझे भी सुख औरों को काटकर । दोहन -        प्रकृति या खुद का ? खुद बचना है तो बचाना होगा . प्रकृति को बचा कर खुद बचना होगा । प्रलय -                  क्या है ? प्रकृति का कहर , मानव का कहर मानव पर ?   खुद को बचाने की कोशिश  कर रहा है मानव . ना जाने फिर क्यों प्रकृति उजाड़ रहा है मानव । प्रलय । विकाश का , विज्ञान का .. मंजर है हर कदम विनाश का ।। माणिक्य / चंद्र प्रकाश / पंकज

तुम देख रही हो ना ?

तुम से हजारों बार मिला हूँ ..         हर बार मिलने के लिए बेचैन रहता हूँ .. सुन रही हो ना तुम ?        वो देखो .. तुम देख रही हो ना ?       सूरज जो शर्मा रहा है .. हम को देख और छुप गया है माँ के पल्लू से ..          वो दूर खड़े हंसों के जोड़ों को देख रही हो ना..? हमें उन से सीखना चाहिए ।       प्रेम बिना आवरण का विशुद्ध ..           देखो पर्वतों का आकाश को चूमना .... तितलियों का पराग में मद मस्त होना ..           उस पेड़ के पत्तों के राग सुनो ... तुम्हारी तरह गाते हैं ...            चलो मैं तुम को तुम मुझ को पढ़ो .. हँसो तुम हँसो मुझे पढ़ कर ..             तुम्हारा चन्दन देह ..   दिल मेरी देह की औषधी है ।         बस यूँ ही मिलो बस ...                और यूँ ही हँसो ... माणिक्य बहुगुना

प्रेम

मुझे इतने प्रेम से गले मत लगाओ .. मुझे देश के लिए लड़ना है मैं कमज़ोर न पड़ जाऊँ .. तुम ईश्वर से प्रार्थना करना । मैं अगर मर जाऊँ लड़ते लड़ते .. मुझे बस एक बार छू लेना  .. मेरे बच्चों को मुझे मत दिखाना .. क्या पता मैं उठ जाऊँ ? तुम दूसरा विवाह कर लेना .. अगर मैं ना लौटा तो .. मेरा पैसा , घर तुम्हारे नाम पे है .. तुम ख़ुश रहना  ऐसे ही । मेरी रुह तुम्हारा दुःख सहन नहीं कर पाएगी ... तुम मेरे बचे अंगों को जलाना मत , दफनाना मत , दान कर देना । मैं तुम्हारी ज़रूरतें पूरी नहीं कर पाया ... ना ही तुम्हें प्यार दे पाया जिसपे तुम्हारा हक़ था .. मैं तुम्हारा अपराधी बन सकता हूँ . देश का नहीं । तुम मेरी किताबें , तुम्हारे प्रेम पत्र जलाना मत .. मेरी और तुम्हारे कुछ फोटोज हैं उन्हें फेंकना मत .. तुम खिडकियाँ खोले रखना मैं तुम्हें देखने आया करूँगा ... हवा , पानी , रोशनी , अंधेरा बन कर । माणिक्य बहुगुना

मैं

मैं देश की तरक्की चाहता हूँ ..      लेकिन टैक्स चोरी मैं ही करता हूँ । मैं स्वच्छ भारत मिशन में साथ हूँ ..     कूड़ा सड़कों में नदियों में मैं ही फेकता हूँ । मैं काला धन भारत में लाना चाहता हूँ ..      मैं ही तो रिश्वत लेता हूँ । मैं सरकारी टीचर बनना चाहता हूँ ..      लेकिन खुद के बच्चों को पब्लिक स्कूल में पढता हूँ । मैं ही तो हूँ जो अपनी माँ बहन को इज्जत देना चाहता हूँ .   मैं ही बात बात में तेरी माँ तेरी बहन कहता हूँ । मैं ही गाय को माँ कह कर अनशन करता हूँ ..      मैं ही बूचड़खाने में मांस की खरीददारी करता हूँ । मैं ही पत्थर , कब्र को पूजता हूँ  .....     मैं ही अपने माँ पिता को वृद्धा आश्रम छोड़ आता हूँ । मैं ही खुद के बच्चों को समझा पाने में असमर्थ होता हूँ ..    मैं ही हर किसी को सलाह देता फिरता हूँ । मैं ही हर नवरात्र लड़की को पूजते हूँ ..      मैं ही उस नन्हे भ्रूण हो मार देता हूँ । मैं ही दहेज़ प्रथा को अभिशाप मानता हूँ ..      मैं ही तो दहेज़ चाहता हूँ । मैं ही तो मिलावट करता हूँ ..      फिर मैं ही शुद्ध चाहता हूँ । मैं ही जमीन काट ,जंगल काट घर बना रहा हूँ ..

भारतीय राजनीति

हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष ने अपने सभी सदस्यों को बुलाया और बच्चों की समस्याएँ बताई कि हिन्दी में बच्चों को कबीर , रहीमादि समझ नहीं आते और न ही वर्तमान में इसका कोई महत्व है । क्यों ना कुछ रोचक पढ़ाया जाय ? एक महाशय बीच ही बोल दिए सनी लिओनी का संघर्ष पढ़ाया जाय तो ? और संघर्ष दिखाया जाय तो कैसा रहेगा ? कुछेक ने नाक - मुँह बनाये ...। कुछ समर्थन में उतर आये ...? और कुछेक ने अभिव्यक्ति की आज़ादी का हनन का नाम दिया । कुछेक अंशन पर बैठे । बात बच्चों तक पहुँची , नन्हे बच्चे रोडों में उतरे और हंगामा मचाया । बात मंत्री जी तक पहुँची । विपक्षियों ने हंगामा मचाया ..। हमें आज़ादी चाहिए विषय वस्तु बनाने की देश के हर कोने से पक्ष - विपक्ष में उतरे लोग ..। लोग भुखमरी से मर रहे थे मंत्री जी भाषणों में अडे थे । लोकसभा , राज्यसभा में हंगामा हुआ । आजादी आज़ादी । कुछेक महिमामंडित करने लगे लोगों को । टी.वी. की टीआरपी बड़ी । माणिक्य बहुगुना

टापर हूँ मैं ।

मैं टापर हूँ बिहार का ..। देश का भविष्य हूँ । चाणक्य हूँ मैं । मैं ही बूद्ध हूँ । नये ज्ञान का सृजन हूँ मैं ..। मैं ही ज्ञान -विज्ञान हूँ । टापर हूँ मैं । माणिक्य बहुगुना

।। उत्तराधिकारी ।।

।। उत्तराधिकारी ।। मेरे मरने के बाद मेरी पुस्तकें किस की होंगी ये सोच कर मैं कई मार यमराज को धोखा दे चुका हूँ । लेकिन इस बार यम के दूत चेतावनी देके गये हैं ....इस बार मरना ही होगा मुझे लेकिन अपना उत्तराधिकारी किसी बनाऊँ अपनी पुस्तकों का ये जान कर चिन्तित हो उठता हूँ । उत्तराधिकारी के लिए मैंने विज्ञापन भी निकाला लेकिन कई आये लेकिन भाग गये । बेटा बोलता है कि इस भौतिक युग मैं जहाँ सब काम कम्पयूटर से हो जाता है पुस्तकों का क्या करें । लेकिन मेरी रुह बसी है पुस्तकों में । बस अब इन पुस्तकों का उत्तराधिकारी चाहिए । क्या तुम बनोगे मेरे पुस्तकों के उत्तराधिकारी ? क्योंकि मृत्यु हर पल निकट है । माणिक्य बहुगुना

मेरी गिलहरी

गिलहरी मेरे बग़ीचे की . स्वतन्त्र , उन्मुक्त . लोक लाज से , वस्त्रों से , लिंग भेद से, भ्रूण हत्या से, जातियों से , आरक्षण से , कुरीतियों से , शादी , दहेज़ से , स्कूली शिक्षा से , पदवी से , वादों से , कृत्रिम शारीरिक सुंदरता से , कृत्रिम प्रेम से ,बातों से , देह के अकारण भूख से , बस प्रेम करते हैं .. किसी से भी कभी भी कहीं भी , उनके समाज में दंगे नहीं होते हैं , खून नहीं बहाया जाता है किसी का भी , बस प्रेम करते हैं ... माणिक्य बहुगुना / पंकज / चन्द्र प्रकाश

दिल्ली एक अनजान शहर

दिल्ली एक अनजान शहर . अनजाने लोग , खुलापन, अभिव्यक्ति की आजादी . भुखमरी , गरीबी , भिखारी , अकुलाये रेड लाईट पर बच्चे माँयें , दिल्ली गेट का चबूतरा याद है मुझे . एक काली सी मूरत . कबूतरों का विश्राम स्थल . मल से सनी हुई .. भिखारियों की एक बहुत बड़ी ज़मात .. घेर कर बैठते हैं चबूतरे को ..कबूतरों का झुण्ड .. ज्वार , बाजरा .. बिखरा हुआ .. नाम दिल्ली का द्वारा .. उपमायें , अलंकार , नृप , शोभायें . दरियागंज बहु आबादी क़स्बा टाइप .. गन्दी नालियाँ , रक्त का कीचड़ .. मांस के बदबू से विचलित मन .. लोगों से भरा हुआ .. दुकानें , इत्र , सड़ा हुआ ख़मीर .. समोसे , ठेले में बिकता जानवर .. बिकती खालें , लटकते बकरे , भेड़ ... मक्खियों का घर .. अच्छे लोग नमाज़ .. मीना बाजार , शदियों की सोभा , नाम .. जामा मस्जिद , आस्था , आनन्द , अनुकूल .. दुकानें टायर , कुछ गाड़ियों के पार्ट .. खजूर , सुंदर वस्त्र , अलंकार .. लाल किला , राजाओं , शहजादों की शान .. मुगलों का वर्चस्व .. पुतले , तोपें , अवशेष .. भोग - विलास . समय का चित्रण .. अदृश्य कोहराम .. घोड़ों के नाल की ध्वनियाँ .. अद्भुत शिल्प , बे

एक लड़की

लड़की एक सुंदर लड़की एक लकड़ी ठेले पर सब्जी बेचती है .. वो मुस्कान मुझे मजबूर करती है .. उसी से सब्जी खरीदने के लिए  , वो सब्जी संग हँसी बेचती है .. मुफ़्त में , रूह की खुसी भरी दुपहरी में , जाड़ों की ठन्डे में वो यूँ ही अकेले पतवार चलती है । एक भाई एक बहन को पालती है . पढना चाहती है , माँ , बाप के साये से वंचित है .. फिर भी माँ बन कर पिता बन कर पाल रही है . कितने संघर्ष नहीं करती ? बस आँसू आँचल में दबा देती और अधरों में मुस्कान , कौन कहता है बेटियाँ बोझ होती हैं ? बस ऐसी है वो लड़की , मैं हर रोज गुजरता हूँ उस रस्ते .. बस उसे देख कर दिल खुस हो जाता है .. मैं एक दिन भी उसे नहीं देखता तो परेसान हो जाता हूँ . माँ की तरह . उस से बात करने का दिल करता है .. उस के कष्ट देख कर कई बार विचलित हो उठता हूँ .. कभी मानवता के नाते कुछ करने का मन करता है .. अगले पल समाज से डरता हूँ .. ये ब्राह्मण . क्षत्रिय , वैश्य हैं बस सहम जाता हूँ .. उस लड़की पर दया अती है , प्यार आता है , दुलार आता है ... एक भाई की तरह , पिता की तरह , माँ की तरह , विशुद्ध प्रेम . बस कई सालों से बेच रही है स

प्रतिक्षा

               । प्रतिक्षा । हर पल तुम्हारी प्रतिक्षा करता हूँ .. तुम मेरे निकट नहीं आती हो । क्या मैंने ही प्रेम किया था ? तुम ने भी हजारों वादे किये थे ना ? अब तुम क्यों भूल गए मुझे और वादों को . लेकिन फिर भी तुम मेरे हृदय में रहती हो । तुम्हारे सुन्दर केश बादल से लगते हैं सुंदर . और तुम्हारी आँखों में स्वयं कामदेव बसते हैं । तुम्हारी बोलने की कला मुझे प्रभावित करती है . तुम्हारे चलने से मैं मदमस्त हो जाता हूँ । तुम गुस्से में पाटल (गुलाब )की कली सी लगती हो . और जब हँसती हो तो अप्सरा सी सुंदर लगती हो । लेकिन अब तुम्हारा हृदय पत्थर हो गया शायद । पहले तुम्हारा हृदय हिम सा कठोर होकर भी पानी सा था . तुम तो मुझे उसी क्षण भूल गई होगी . लेकिन मैं तुम को प्रतिपल याद करता हूँ । और अंत में तुम्हारी तारीफ में नेति नेति कहता हूँ . क्योंकि मेरे पास शब्द नहीं  हैं . मेरे लिए सब कुछ हो तुम । मैं तुम्हारी प्रतिक्षा करता हूँ हर पल . हर क्षण , रात -दिन . मुझे तुम ने जूठा मान लिया ना ? चन्द्र प्रकाश / माणिक्य /पंकज

मेरा हृदय

तुम सुन रही हो ना ? मेरा हृदय मक्खन सा कोमल है .. थोडा सा प्रेम की आँच से घी बन जाता हूँ .. और थोडा गुस्से में ठोस पत्थर सा । लेकिन मैं पत्थर नहीं हूँ .. मैं बस दिल से बुरा नहीं हूँ । बस गुस्से से लाल हो जाता हूँ कई बार क्योंकि मुझे हर किसी की फ़िक्र होती है । तभी हर बार लोग फायदा भी उठाते हैं .. मुझे बच्चा बनना पसन्द है ..। अबोध , राग द्वेष से मुक्त .. केवल प्रेम , लाड़ से युक्त । सुन रही हो ना तुम मैं बुरा नहीं हूँ ..। थोड़ा बचपना है .. मैं औरों सा नहीं । केवल अपने लिए सोचूं .. बस सब के लिए सोचता हूँ ..। मैं बच्चा हूँ मुझे बच्चा रहने दो .. अनुरोध है । माणिक्य बहुगुना / पंकज / चंद्र प्रकाश

आधुनिक प्रेम

आज नीतू का brithday था .. नीतू कौन ? भाई वर्तमान में जो मेरी सखी है ...। आप जैसे पढ़े लिखे लोगों की भाषा में girlfriend ... टेवल के उस छोर में बैठी नीतू आज मुझे कुछ ज्यादा ही अच्छी लग रही थी लगे भी क्यों ना भाई मैंने जो रेड टॉप दिलाया था पिछले हफ़्ते वो ही उस ने पहना था और उस ने जो सेन्ट लगया था वो मुझे मदहोश ही कर रहा था ..। मन तो था उस के हाथों में हाथ रखूं लेकिन अगले पल ख्याल आया कि भाई कहीं लाफा मार दिया तो कॉलेज में क्या मुँह दिखायेगा ...? लेकिन भगवन ने मेरे मन को पढ़ लिया था शायद ... उस ने सरकाते हुए हाथ मेरे हाथों पर रख लिए ... और बोली क्या हुआ चंदर ...? आज कुछ बोल क्यों नहीं रहे हो ...? मैं कुछ लडखडाती आवाज़ में बोला ... कुछ ..... नहीं ...। तभी पीछे से घोड़े की नाल जैसे आवाज मेरे कानों में गूँजी आवाज कुछ जानी पहचानी थी ... । तभी जिस का नाम मेरे दिमाग़ में आया वो मेरी पिछली सखी थी ...। अभी भी दिल के किसी कोने में उस के लिए स्थान था क्योंकि बहुत समय तक साथ रहे थे उस का असर तो होगा ही ...और जिन दिनों वो छोड कर गई थी उन दिनों में रोया भी कम नहीं रात - रात भर जाग कर रोया ... चलो छोड़