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मई, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मदमस्त मैं

अंज अंग आँखें अंजन हैं , मदन की अंगचरी तुम . अंकुरित यौवन ये तन मन है , प्रेम में अंटाचित्त जग तुम ।। माणिक्य बहुगुना

नराधम

चंद कागज के टुकड़ों में नर इतरा रहा है , वशाकर श्वनों की मौत मर रहा है । न खबर है उसे कोई अपनों की न घर की , जब की उस पर मार पड रही है दर - दर की । धिक्कार है नराधम तुझको तेरे कर्म को , चमड़...

तुम्हारा प्रेम

तुम्हारा प्रेम इस पत्थर .. दिल को ... मोम बना गया ... खुद निष्ठुरता अमाया में .. मेरा दिल तलाशता है ... तुम को , गुनगुनी धूप में बादल की छाँव में , रंगों में .. रंजो में .. कलकल में .. कलरव में ... खु...

तुम्हारी याद

कई रात तुम्हारी याद आती है  न जाने क्यों .....? नहीं सो पाता हूँ रात भर  न जाने क्यों ......? तुम्हारे उस नव यौवन को पाने की ललक तो नहीं ? नहीं नहीं मैं औरों सा नहीं , कुछ और चाहता हूँ , तुम जा...

आत्म हत्या नहीं तो क्या करूँ ?

खुद बिक कर जिन्दगी बो दी खेतों में , मिट्टी में सनते ..         धूप में नहाते ... दिन-रात एक करते खेतों में । मेरा कसूर है अनपढ़ हूँ ... पढ़े लिखों को जीवन देता हूँ । अधिक फसल होने पर मैं न...