सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जुलाई, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अनोखी दुनियां है

अनोखी दुनियां है ... अनोखे लोग हैं इस दुनियां के ।क्या कहूँ कुछ व्यथित हो उठता हूँ लोगों को देख कर ,सुन कर , पढ़ कर बस इसी लिए लिखता हूँ .... आजकल व्हाट्सऐप, फेसबुक,ट्वीटर इत्यादि में भी लोगों ने समुदाय बने हुए हैं या यूँ कहें कि कैटेग्री बनी है । और कुछ तो और भी विचित्र होते हैं उनका काम या तो किसी लड़की को sms करना होता है या उन की तस्वीरों में आसक्ति पूर्ण टिप्पणी उन की उम्र देख कई बार आश्चर्य चकित भी होता हूँ जो अपनी पुत्री सामान कन्याओं में कॉमेंट करते हैं आसक्ति पूर्ण ...धन्य हो ऐसी जवानी । कुछ का मकसद केवल धर्म विरोधी गति विधि करना होता है जैसे आज कल पूरा का पूरा फेसबुक भरा पड़ा था याकूब की फाँसी से कई पक्ष में बोल रहे थे कई विपक्ष में .... और आज से दो - तीन दिन पहले लोगों की श्रद्धा कलाम साहब के चरित्र और कलाम साहब के जीवन में थी । एक अंधी दौर में दौड़ते हैं आज कल लोग ..बस ना मंजिल का पता है ना रास्तों का बस चलते चलो ...विशेष कर सोसल नेट्वर्किंग साइट्स में । कई लोग अपनी मानसिकता का प्रदर्शन यहाँ पर भी कर ही देते हैं कई रोज पहले किसी व्यक्ति ने दीपिका पाडुकोण के स्त्री के शारीरि

दो युगों का संघर्ष

सड़क के पार .. आलीसान बंगला , बंगले में घुटती खुशियाँ , एसी की हवा लेता ... अंग्रेजी कुत्ता , कंप्यूटर,मोबाईल ... में बिजी बच्चे , नोटों के बण्डल की ... गिनती करता बाप , अपनी मित्र मंडली के ... साथ किटी पार्टी करती माँ , दो युगों का संघर्ष झेल कर ... थक चुका , कोने में घुटता .. वह अस्तित्व हीन ... वृद्ध कौन है ? शायद किसी का बाप ... किसी का दादा , उसी कोने में ... आँखों में दुआएँ लिए, झुर्रियों से भरा चेहरा , काँपते हाथ , टेढ़ी कमर ... वो बच्चे सी ... हरकत करती कौन है ? शायद किसी की माँ .. दादी । और उसी महल के सामने .. एक झोपड़ी , जिसमें माँ .. नव शिशु के साथ , दिन भर का संघर्ष .. माँ रात्रि नव शिशु के साथ , सूरज दिन में ... झोपड़ी से अंदर झाँक ... शिशु को जलाता , रात्रि में चाँद .. बच्चे को गोद सुलाता , बरिस भी... नहलाती , गर्म पवन ... रुलाती , माँ खुद ना खाकर .... बच्चे को खिलाती , खुद पानी से ... भूख मिटाती , और दूसरी तरफ .. महल में भोजन .... की कोई कमी नहीं, कुत्ते भी ... लाख दो लाख का मॉल ... डकार जाते , किसी को दो वक्त का भोजन मिलता

पिता

पिता रिश्तों की बुनियाद है . धूप में छाँव है ..., अकाल में अनाज है ., पिता के चरणों में ..... चारों धाम हैं । पिता जीवन में विश्वास है , उमंग है ..., नया रंग है । पिता भगवान का .. दूसरा रूप हैं ., पिता संसार का... सारा ज्ञान हैं   । भोर की लाली है... हम बगीचे के पौंधे पिता माली है । पिता पुत्र के लिए.. आन बान शान है ..., सिर में छत है .. पिता है तो सारा सुख है , पिता साथ तो रोज मेला है , पिता नीम है तो ... शक्कर भी पिता ही है । पिता दुआओं की बरसात है , पिता अँधेरे में रौशनी हैं , बच्चे पौंधे तो ... पिता वृक्ष हैं । पिता गुनगुनी धूप हैं .. लोरी हैं ..., मेरे अभिनेता हैं । पिता अनुभव का खजाना हैं , पिता बिन जीवन अधूरा है , बेटे का विश्वास हैं । पत्नी की माथे की ... बिन्दी हैं ... मंगल सूत्र हैं ... हाथ के कंगन हैं.. पैरों के पाज़ेब हैं ... सिंदूर हैं ... सजना संवरना है । पिता राम राज्य हैं .. पिता शब्द अपने आप में .. महाकाव्य है । चंद्र प्रकाश बहुगुना / माणिक्य /पंकज

याकूब मेमन को फांसी क्यों नहीं ?

सजा शब्द का प्रयोग हम लोग आमतौर पर दैनिक दिनचर्या में करते हैं । वो चाहे आप को आप की माँ ने सजा का फरमान सुनाया हो या पापा ने या फिर अध्यापक ने पर हम लोग इस शब्द से अनभिज्ञ नहीं हैं । लेकिन मैं ख़ुद सजा/दण्ड को गलत मानता हूँ क्योंकि जहाँ तक हो प्यार से समझना चाहिए । और अगर प्यार से काम बन रहा है तो सजा देनी भी नहीं चाहिए । लेकिन कई स्थानों में कई लोगों को प्यार से बात समझ नहीं आती है .., तो उन को उस के अपराध के अनुकूल दण्ड / सजा देनी चाहिए । क्योंकि अगर हम किसी व्यक्ति को सजा नहीं देते हैं तो वह शायद फिर वही काम करे ..। और अगर ना भी करे तो उसे देख कर अन्य अवश्य करेंगे जो पूरे समाज के लिए खतरनाक साबित हो सकता है । एक मनुष्य को सजा देने से अगर समाज का भला हो रहा है तो शायद उसे सजा देनी चाहिए । सजा का प्रावधान केवल निजी जीवन में ही नहीं अपितु सरकारी व्यवस्था में भी इसका प्रयोग किया जाता है । जो कई प्रकार की हो सकती है जिससे में से प्रमुख है फाँसी की सजा या मृत्यु दण्ड ... यह सबसे खतरनाक तरीका है सजा देना का में इस सजा की निंदा करता हूँ किन्तु जो लोग समाज के लिए खतरनाक हैं उन को ये

चेहरे के भाव

चेहरे के भाव ना जाने कितने हैं , दुःख में अलग सुख में अलग किसी से नाराज हो अलग किसी से प्यार हो अलग बड़े लोगों के लिए अलग छोटे लोगों के लिए अलग ...सम्मान में अलग..... और न जाने कितने भाव होते हैं । लेकिन मित्रो आप समझ रहे होंगे कि "चेहरे के भाव" शीर्षक में भी कुछ लिखा जा सकता है क्या ? भाईयो , बहनो और प्रेमियो "चेहरे के भाव" में तो एक पूरा ग्रन्थ ही तैयार कर दूँ । लेकिन ही ही ही नहीं इतना आप लोगों को नहीं बोर करूँगा ..... चेहरे के भाव की बात आई है तो महिलाओं से शुरू करते हैं क्योंकि विशेष कर महिलाओं की फेस एक्सप्रेशंस कितनी जल्दी बदल जाती है ये तो शायद वो भी नहीं जानती हैं । पर जो भी हो आप ने खुद महसूस किया होगा पब्लिक प्लेस में महिलाओं को एक टकी लगा कर देखो तब पता चलेगा की छटी का दूध क्या होता है ...। विशेष कर भारतीय समाज में मेट्रो में आप महिला वाली सिट पर बैठे हो और उठने का नाम नहीं ले रहे हो तो एक स्त्री के चेहरे के भाव देखिये देखने लायक होते हैं । जब आप बिना वजह बात करते हैं किसी स्त्री या लड़की से जब आप चले जाते हैं तो तब के भाव क्या भाव होते हैं ? ऐसा मुँ

वर्ण पिरामिड

       (1) क्यों ? वृ क्षों प र्व तों ने वल्कल  छो ड़ दिए हैं  नानी ने कहानी प न घ ट ने पानी         (2) हैं  अश्क  चे ह रे  को भीगोते  खूब रुलाते  जिन्दगी तो हुई  दुःखों का पनघट ।।            (3) ना जाऊं मय्या पनघट कनुवा छेड़े कलाई मरोड़े पानी ना भरने दे ।।            (4) ना आज रहे   वो    पनघट जिससे पानी लाते  झटपट   बचे हैं मरघट

याद रहता है

हर रात पिछली रात की याद लिए रहती है .. हर सुख पिछले दुःख को संजोए रखता है । हर खुसी में पिछला रुदन छुपा रहता है ... हर प्रेम में वो पहला प्रेम याद रहता है । चाहे कुछ भी हो कुछ यादें हम भूल कर भी नहीं भूलते ... दिन में रात में चाँद की बारात में चिड़ियों के चहकने में बादल के गरजने में भोजन में , बर्तन की खान खान में बच्चों की आवाज में .. सुई में धागे में .. खुद की निजी जिन्दगी में रोने में हँसने में .. गाने में , सरगम में गुस्से में , खुसी में .. मेरे लिखने में .. डोर वैल की आवाज में .. घंटी में , गाड़ी के हॉर्न में मेरे अकेलेपन में बस तुम याद आ जाती हो आज हृदय इतना श्रान्त है ... मन विचलित है । उन यादों में ... जो पिछली रात जी ली थी । आज आँखें तो मेरी हैं .. और हर नींद तुम्हारी रहती है । ये शारीर मेरा है .. दिल भटकता रहता है । मेरा ये जीवन तो तुम को ना पा सका ... मैं अगला जन्म अवश्य लूंगा ।। चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

।। प्यार जो मिला था हमको तुम्हारा ।।

क्यों फूल भी कांटे लिए रहते हैं ... क्यों प्यार में ये जुदाई ही मिलती है , जिन्दा हैं तो आज सिर्फ तुम्हारे लिए ... मर भी जाते तो क्या गम तुम्हारे लिए , जिंदगी मयकश बना दी थी तुमने ... दे दिया था तुमको भी हमने , अपनी तो मयकशता तुम छीन ले गई ... वो सब कुछ मेरा मुझ को क्यों नहीं दे गई , जिन्दा रहने के लिए तो एक ख्वाब ही बहुत था .... फिर क्यों मुझे वो एक हक़ीक़त दिखा गई / जबाना भी लगते हैं दुश्मन मेरा ... प्यार जो मिला था हम को तेरा । चंद्र प्रकाश बहुगुना / माणिक्य /पंकज