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वर्ण पिरामिड

                        ( 1 )

तो
ये है
हमारे
देश की
राजनीति
गन्दी,बीमार
देश का दर्पण
ना जिसका ईमान ।।

                      (   2  )
मैं
मेरा
यौवन
बचपन
बीता इस
स्वर्ग भूमि में
पाता सौंधी महक ।।

                      (  3  )
ना
बन
जाऊँ मैं
नल,यक्ष
ये बरसात
याद दिलाती है
  बरसते देखा तो ।।

                        (4)
ये
नदी
में कौन
पसरा है ?
बादल जैसा
छतरी बन के
किसे बचाता है ये ।।

चंद्रप्रकाश बहुगुणा/पंकज/माणिक्य 

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