हर रात पिछली रात की याद लिए रहती है ..
हर सुख पिछले दुःख को संजोए रखता है ।
हर खुसी में पिछला रुदन छुपा रहता है ...
हर प्रेम में वो पहला प्रेम याद रहता है ।
चाहे कुछ भी हो कुछ यादें हम भूल कर भी नहीं भूलते ...
दिन में रात में
चाँद की बारात में
चिड़ियों के चहकने में
बादल के गरजने में
भोजन में , बर्तन की खान खान में
बच्चों की आवाज में ..
सुई में धागे में ..
खुद की निजी जिन्दगी में
रोने में हँसने में ..
गाने में , सरगम में
गुस्से में , खुसी में ..
मेरे लिखने में ..
डोर वैल की आवाज में ..
घंटी में , गाड़ी के हॉर्न में
मेरे अकेलेपन में
बस तुम याद आ जाती हो
आज हृदय इतना श्रान्त है ...
मन विचलित है ।
उन यादों में ...
जो पिछली रात जी ली थी ।
आज आँखें तो मेरी हैं ..
और हर नींद तुम्हारी रहती है ।
ये शारीर मेरा है ..
दिल भटकता रहता है ।
मेरा ये जीवन तो तुम को ना पा
सका ...
मैं अगला जन्म अवश्य लूंगा ।।
चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य
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