मेरी कल्पना की किताब हो तुम .....
मेरे उपन्यास की नायिका हो तुम ।
मेरी इस तन्हाई के साथ हो तुम ...
मेरे जीवन का प्रकाश हो तुम ।
मेरे दर्द में एक आस हो तुम ....
भरी धूप में छाँव हो तुम ।
मेरा पूर्वार्द्ध , उत्तराद्ध भी हो तुम ...
मेरी पूजा , मन्दिर , आरती हो तुम ।
मेरा काजी,काशी,हरिद्वार भी तुम ..
इस जग की व्यष्टि,समष्टि भी तुम ।
मेरे सांसों का उतार-चढ़ाव हो तुम..
मेरी आँखों के मोती हो तुम ।।
मेरे रातों का सपना हो तुम ......
मेरे दिन का उजाला हो तुम ।।
मेरे जीवन का सबसे कीमती रत्न हो तुम ....
मेरी भाषा के शब्द हो तुम ।।
मेरे लिए जीना मरना सब हो तुम ...
बस इस जीवन का अंत हो तुम ।।
कहा ना कि मेरे लिए सब कुछ हो ....।।
चंद्रप्रकाश बहुगुणा/पंकज/माणिक्य
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