युग का गाँधी फिर जन्म है .
करने कार्य समीक्षा ,
लोक तन्त्र का रूप बदलने ...
लोकपाल को ही लाने ।
जागो अब भी समय बचा है .
करलो देश की रक्षा ,
भारत में खुशहाली करने .
भारत की बदहाली हरने ,
बहुत हुई तानाशाही लोकतन्त्र की ..
करलो देश की रक्षा ।।
अहिंसा ही मन्त्र है इसका .
मार्ग सत्य है जिसका ,
पुनः भारत की आजादी की ..
ली है जिसने दीक्षा ।।
अनशन तो एक रूप है इसका ...
बोस नहीं दिखा है जिसका .
धरणी माँ के अंक बैठकर .
पाई जिसने शिक्षा ।।
भारत माँ के ख़ातिर जिसने .
सर्वस्व त्याग दिया है ,
और सन्तों की संगत में .
सत्य का घूंट पिया है ..
बहुत हुआ अत्याचार ..
अब नहीं होती प्रतिक्षा ।।
कोई कहता युग पुरुष तो ..
कोई अन्ना कहता ,
हम तो कहते युग का गाँधी ...
यों अमृत सा बहता ..
आज जन जग-मन जग गया है ,
मिलते रहे सत् शिक्षा ।।
कवि=
चंद्र प्रकाश बहुगुणा / माणिक्य/पंकज
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