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कविता

भावाभिव्यक्ति नहीं है केवल कविता ,
पंक्तियों की तुकबंदी , भाषा में निपुणता नहीं है कविता ।
केवल हास्य , नवरसदि भी नहीं है कविता ,
और ना ही छंद,अलंकार से शुशोभित है कविता ।

तो कविता क्या है -
सम्पूर्ण जग को एक दृस्टि से दिखने वाली है कविता ,
माँ के प्यार की तरह है कविता ।
हर किसी के मन का उद्गार बयां करती है कविता ,
राम को राम दिखये और रहिमन को रहिमान ,
जग वालो का दुःख हरे है कविता

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रस्मे-वफा के चलते हम एक नहीं हो सकते

इन रस्में-वफा के चलते , हम एक नहीं हो सकते । राह जोहते दिन में , रातों को यादों में जगते । तुम्हारे पापा से जो बात की, उत्तर में वो भी ना बोले । तुम्हारी मम्मी जी तो मुझको निठल्ला , नाकारा क्या - क्या कहते । जग वाले तो हमको यों न मिलने देगे मुझको नीच तुमको उच्च जो कहते । सब की नज़रों में जीरो हूं प्रेयसी , तुम ही जो हीरो कहते । हर पल लबों पर नाम तुम्हारा , ज़्यादातर पक्ति लिखते । मैंने तो निर्णय किया है प्रेयसी , हम प्यार तुम्ही से करते । ये खत लिखा है तुमको रोया हूं लिखते - लिखते । इन रस्में-वफा के चलते , हम एक नहीं हो सकते ।

टापर हूँ मैं ।

मैं टापर हूँ बिहार का ..। देश का भविष्य हूँ । चाणक्य हूँ मैं । मैं ही बूद्ध हूँ । नये ज्ञान का सृजन हूँ मैं ..। मैं ही ज्ञान -विज्ञान हूँ । टापर हूँ मैं । माणिक्य बहुगुना