आँगन में वो छन कर आती ..
धूप थी वो सुनहरी ,
वो दीवारों पर परछाई ...
पानी की थी बनती ।
याद दिला जाती हैं वो तो ...
मेरे ही बचपन की -2 ।।
माँ की हर बात थी प्यारी ...
माँ की हर बात थी न्यारी -2
कभी वो हर सर्द बचाती ...
कभी सिर सहलाती -2 ।।
याद दिला जाती हैं वो तो ...
मेरे ही बचपन की -2 ।।
मेरे खेलने का जरिया था ...
पापा का वो कन्धा -2
मामा जिसका चाँद था यारो ...
मैं ही था वो अन्धा -2 ।।
याद दिला जाती हैं वो तो ...
मेरे ही बचपन की -2 ।।
तारे गिनते रात-रात में ....
दिन मिट्टी से खेला ,
माँ को ही अपना सब मानते ...
और हर दिन होता था यों मेला ।।
याद दिला जाती हैं वो तो ...
मेरे ही बचपन की -2 ।।
कवि---
चंद्रप्रकाश बहुगुणा / माणिक्य /पंकज
लोग चांद तक पहुंच गये ..... मैं बचपन के खिलौनों से खेलता हूं.... लोग इतने चालाक हो गये कि मत पूछ चन्दर .... मैं अभी भी हालातों के उख...
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