क्यों स्वप्न में ही ,
उम्मीदों के बोझ टांगती ...
जा रही है जिंदगी ।।
स्वांग के चोले पहने हैं आज मानव ,
खुद की पहचान नहीं है अगर ।
दरिंदगी की भी हद पर कर चुका है मानव ,
फिर भी मंदिरों में लग रही है कतारो की लंबी डगर ।।
क्यों मन्नतों के ..
बोझ तले दबती जा ....
रही है जिंदगी ।।
संयंत्रो के गोद में बैठ रहा है मानव ,
और स्वप्न परी के साथ कर रहा है दुराचार ।
इसी लिए पशु बनता जा रहा है मानव ,
फिर भी मंदिरों में लग रही है कतारो की लंबी डगर ।
वह कौन सी बात है ...
जिसके लिए ये सब ...
कर रही है जिंदगी ।।।
।। सम्भावना ।। सम्भावना शब्द संस्कृत में सम उपसर्ग पूर्वक भू सत्तायाम् धातु से ण्यन्त् में ल्युट और टाप् प्रत्यय करने पर निष्पत्ति होती है । सम्भावना जीव...
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