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आया था कल रात चाँद छत पे

आया था कल रात चाँद छत पे ,
मेरे बुलाने पे ..
कंधे में हाथ रख के बोला ,
क्यों शिकन माथे पे ..।

मैं भी दुखी होकर बोला ..
क्या बचा है जीवन में ,
चाँद हँसता रहा कुछ क्षण ..और बोला
मेरा जैसे संघर्ष कहाँ जीवन में ।

मैं हर क्षण रंग,रूप , आकर
बदल लेता हूँ ,
फिर भी पूजनीय क्यों ?
क्योंकि मैं थका नहीं ना ।

ना अमावस से ना पूनम से...
बस चलता रहा ,
कई जन्मों तक ..
दिन में सूरज की रौशनी में चल लेता हूँ .।
रात को शीतल जुगनूओं
के साथ चल देता हूँ ।।

बस मेरे लिए कोई ना बैरी,ना मित्र .
बस चलता रहता हूँ ...,
तू तो एक छोटे जीवन से परेशान है ..,
मैंने ना जाने कितने जीवन जिए हैं ।।

चंद्रप्रकाश बहुगुणा /पंकज/माणिक्य

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