क्यों फूल भी कांटे लिए रहते हैं ...
क्यों प्यार में ये जुदाई ही मिलती है ,
जिन्दा हैं तो आज सिर्फ तुम्हारे लिए ...
मर भी जाते तो क्या गम तुम्हारे लिए ,
जिंदगी मयकश बना दी थी तुमने ...
दे दिया था तुमको भी हमने ,
अपनी तो मयकशता तुम छीन ले गई ...
वो सब कुछ मेरा मुझ को क्यों नहीं दे गई ,
जिन्दा रहने के लिए तो एक ख्वाब ही बहुत था ....
फिर क्यों मुझे वो एक हक़ीक़त दिखा गई /
जबाना भी लगते हैं दुश्मन मेरा ...
प्यार जो मिला था हम को तेरा ।
चंद्र प्रकाश बहुगुना / माणिक्य /पंकज
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