तुम चाँद बन आना...
मेरे कमरे के पास ,
कुछ इठलाना ..
कुछ मुस्कुराना,
वो अँधेरे में रौशनी ...
बन खिड़की से झांकना ,
मुझे उठना ...
कुछ देर इन कन्धों में ...
सिर रखना ,
कुछ गुनगुनाना ..
हँसना, हँसना ...
वो स्वेत धवल सा मन ..
को भाना ..
और कहते तुम भी मुझे को भाते हो ,
बस मज़बूरी अमावस की..,
मैं कहता एक दिन की बात करती हो ..
मैं पल - पल तुझ में जीत हूँ ..
कुछ स्वेत अश्रु बहते नैनन से ..
वो तारे बन जाते हैं ।
सूरज की किरणें जब थल में ..
आ जाती हैं ,
वो मज़बूरी में मुझे छोड़कर जाती है ।
काश निश दिन ये ..
दिनचर्या होती ।।
काश यूँ ही हर पल ...
वो साथ होती ।।
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