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पिता

पिता रिश्तों की बुनियाद है .
धूप में छाँव है ...,
अकाल में अनाज है .,
पिता के चरणों में .....
चारों धाम हैं ।
पिता जीवन में विश्वास है ,
उमंग है ...,
नया रंग है ।
पिता भगवान का ..
दूसरा रूप हैं .,
पिता संसार का...
सारा ज्ञान हैं   ।
भोर की लाली है...
हम बगीचे के पौंधे
पिता माली है ।
पिता पुत्र के लिए..
आन बान शान है ...,
सिर में छत है ..
पिता है तो सारा सुख है ,
पिता साथ तो रोज मेला है ,
पिता नीम है तो ...
शक्कर भी पिता ही है ।
पिता दुआओं की बरसात है ,
पिता अँधेरे में रौशनी हैं ,
बच्चे पौंधे तो ...
पिता वृक्ष हैं ।
पिता गुनगुनी धूप हैं ..
लोरी हैं ...,
मेरे अभिनेता हैं ।
पिता अनुभव का खजाना हैं ,
पिता बिन जीवन अधूरा है ,
बेटे का विश्वास हैं ।
पत्नी की माथे की ...
बिन्दी हैं ...
मंगल सूत्र हैं ...
हाथ के कंगन हैं..
पैरों के पाज़ेब हैं ...
सिंदूर हैं ...
सजना संवरना है ।
पिता राम राज्य हैं ..
पिता शब्द अपने आप में ..
महाकाव्य है ।

चंद्र प्रकाश बहुगुना / माणिक्य /पंकज

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रस्मे-वफा के चलते हम एक नहीं हो सकते

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मैं टापर हूँ बिहार का ..। देश का भविष्य हूँ । चाणक्य हूँ मैं । मैं ही बूद्ध हूँ । नये ज्ञान का सृजन हूँ मैं ..। मैं ही ज्ञान -विज्ञान हूँ । टापर हूँ मैं । माणिक्य बहुगुना