सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

तुम में मैं जीत हूँ

मैं जिस में जीत हूँ मरता हूँ ...
मैं वो बात तुम्हें बताता हूँ ।
तेरे आँखों के अश्कों में जीत हूँ ..
तेरी झील सी आँखों में मरता हूँ ।
लबों की हँसी में मैं ही बसता हूँ ....
तेरे ही दुःख में मरता हूँ ।
तुम्हारे अंतस मन में बसता हूँ ...
तुम्हारी इस पीड़ा में मरता हूँ ।
तुम्हारे गालों की लाली में ..
तुम्हारे सांसों के सांसों में बसता हूँ ।
तुम्हारे रोमों में , नस-नस में...
तुम्हारी धड़कन में मैं ही बसता हूँ ।।
तुम्हारी रातों की नींदों में ...
दिन के कामों में मैं ही बसता हूँ ।
तुम्हारी डर में ,लज्जा में ...
शरमाने में मैं ही बसता हूँ ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

।। सम्भावना ।।

               ।। सम्भावना ।। सम्भावना शब्द संस्कृत में सम उपसर्ग पूर्वक भू सत्तायाम् धातु से ण्यन्त् में ल्युट और टाप् प्रत्यय करने पर निष्पत्ति होती है । सम्भावना जीव...

वर्ण पिरामिड

तू मुझे जग से प्यारा ही है ना छोड़ के जा मेरी पूजा भी तू माँ जमीं में देवता ।। मैं बिन तेरे हूँ अधूरा सा गम में मारा लगता क्यों सारा बनता हूँ .....बेचारा ।। चंद्रप्रकाश बहुगुणा /म...

चिकित्सक भगवान या राक्षस

चिकित्सक को भगवान समझा जाता है ये एक सच्चा झूठ है , ये मैं कहीं पढ़ी हुई बात नहीं कर रहा हूँ अपितु देखा हुआ बोल रहा हूँ । हमारे देश में एम्स को उत्तम कोटि के चिकित्सालय समझ जाता ह...