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विरह वेदना

मुझ में तुम ही बसती हो...
हृदय के तहखाने में ,
मुझे हर बात भाँती ...
कहो चाहे तानों में ।।

हृदय वेदना दुष्कर है प्रेयसी..
हर क्षण हृदय में शूल चुभे ,
ब्रह्मांड के सो जाने पर एक तारे को ...
    साथ बुलाता पाँव दबे ।।

रवि पश्चिम में सोता ..
चाँद निकलता खिला-खिला
विरही मन रो पड़ता है ...
चाँद देखकर खिला-खिला ।।

तुमको मैं मंदिर मस्जिद ढूढ़ता ..
पता हूँ मदिरालय में ,
हर कण हर क्षण ढूढ़ चूका हूँ ...
मिलती हो खोने में लय में ।।

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