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विरह वेदना

मुझ में तुम ही बसती हो...
हृदय के तहखाने में ,
मुझे हर बात भाँती ...
कहो चाहे तानों में ।।

हृदय वेदना दुष्कर है प्रेयसी..
हर क्षण हृदय में शूल चुभे ,
ब्रह्मांड के सो जाने पर एक तारे को ...
    साथ बुलाता पाँव दबे ।।

रवि पश्चिम में सोता ..
चाँद निकलता खिला-खिला
विरही मन रो पड़ता है ...
चाँद देखकर खिला-खिला ।।

तुमको मैं मंदिर मस्जिद ढूढ़ता ..
पता हूँ मदिरालय में ,
हर कण हर क्षण ढूढ़ चूका हूँ ...
मिलती हो खोने में लय में ।।

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रस्मे-वफा के चलते हम एक नहीं हो सकते

इन रस्में-वफा के चलते , हम एक नहीं हो सकते । राह जोहते दिन में , रातों को यादों में जगते । तुम्हारे पापा से जो बात की, उत्तर में वो भी ना बोले । तुम्हारी मम्मी जी तो मुझको निठल्ला , नाकारा क्या - क्या कहते । जग वाले तो हमको यों न मिलने देगे मुझको नीच तुमको उच्च जो कहते । सब की नज़रों में जीरो हूं प्रेयसी , तुम ही जो हीरो कहते । हर पल लबों पर नाम तुम्हारा , ज़्यादातर पक्ति लिखते । मैंने तो निर्णय किया है प्रेयसी , हम प्यार तुम्ही से करते । ये खत लिखा है तुमको रोया हूं लिखते - लिखते । इन रस्में-वफा के चलते , हम एक नहीं हो सकते ।

टापर हूँ मैं ।

मैं टापर हूँ बिहार का ..। देश का भविष्य हूँ । चाणक्य हूँ मैं । मैं ही बूद्ध हूँ । नये ज्ञान का सृजन हूँ मैं ..। मैं ही ज्ञान -विज्ञान हूँ । टापर हूँ मैं । माणिक्य बहुगुना