।। सम्भावना ।।
सम्भावना शब्द संस्कृत में सम उपसर्ग पूर्वक भू सत्तायाम् धातु से ण्यन्त् में ल्युट और टाप् प्रत्यय करने पर निष्पत्ति होती है ।
सम्भावना जीवन का यथार्थ है सम्भावना शब्द की उत्पत्ति सम्भव से ही हुई है , लेकिन जिस संभव में एक प्रतिशत भी आशंका हो उसे सम्भावना कहते हैं । सम्भवतः इसी शब्द का निकटवर्ती प्रतीत होता है ।और इसके दो अभिन्न अंग हैं - पूर्ण सम्भावना एवं अपूर्ण सम्भावना । जबकि सम्भावना का ही विलोम असंम्भावना है । जिस सम्भावना में सम्भावना कम हो वहाँ से ही असंम्भावना की सीमा प्रारंभ हो जाती है । जीवन के हर डगर में सम्भावना उत्पन्न होती है - जैसे सम्भवतः वह पहुँच चुका होगा , सम्भावना है कि वो आज आ जाएंगें आदि आदि । इसलिए उचित ही होगा कि सम्भावना जीवन का अभिन्न हिस्सा है । जन्म के साथ ही पनपती है और मृत्यु तक साथ लगी रहती है । ऐसे में सम्भावना जीवन की पत्नी सी प्रतीत होती है। और एक बड़ा प्रश्न यह उठता है कि सम्भावना कब उत्पन्न होती है ?
सम्भावना की उत्पत्ति आशंका के समय होती है । और उत्पत्ति शायद सम्भव से ही हुई है । सम्भावना का संबंध सम्भव से प्रतीत होता है । सफल एवं असफल के पीछे भी सम्भावना रहती ही है ।सम्भावना मनोदशा है जो मनुष्य को सोचने पर मजबूर करती है । लेकिन कई अवसरों पर इसमें लगाम लगाना भी ज़रूरी हो जाता है ।
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