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व्यंग्य

गया था सरकारी दफ़तर.....
      काम से ,
मैं बोला साहब कहाँ हैं ....
     चपरासी से ।
बोला चपरासी ऐसे नहीं मिलते ...
    साहब किसी से ,
मैं बोला क्यों ?
चपरासी बोला ---
      चाय पानी पिलाओ साहब को खुस करो।
मैं बोला -
चाय यहाँ नहीं मिलती क्या ?
चपरासी बोला -
ऐसी बात नहीं है साहब
समझो मेरी बात को ।
मैं पैसे देकर बोला जल्दी लेकर आओ चाय ,
साहब ये वाली नहीं चपरासी बोला ।
मैं बोला इंपोटेन्ट मंगाऊँ क्या ?
नहीं साहब कुछ पैसे देने होंगे ।
क्या साहब को तनख्वाह देना बन्द कर दिया मैं बोला ,
नहीं साहब ये तो उनकी भेंट है चपरासी बोला ।
वो बोला जितना चढाओ उतना पाओ ,
क्या उन्होंने कोई धरम -वरम का काम खोला है क्या मैं बोला I
नहीं - नहीं चपरासी बोला ,
मैं बोला मैं समझा नहीं ,
वो बोला बिन पैसे के वो भी किसी को समझते नहीं ।
मैं सोचने लगा- क्या यह है भारत सरकार ,
तनख्वाह है बैठे बैठे साठ हजार l
और बैठे हैं काम के नाम पर बेकार ,
क्या यही है भारत सरकार ।

कवि चन्द्र प्रकाश बहुगुना
   

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