।। लड़की ।।
मुझे भी दुनियाँ देखने का हक़ था ,
फिर क्यों कोख में ही मुझे रौंद दिया जाता है ?
मेरा कसूर क्या है ??
कि मैं बेटी हूं ?
पर ये जो बेटे हैं उनका अस्तित्व भी मुझ से है ।
फिर क्यों माँ मुझे मरने छोड़ दिया जाता है ??
क्यों जन्म देकर मुझे ? ,
माँ की ममता पिता का प्यार सड़कों पर छोड़ देती है ।
क्या मुझे पालना जुर्म है ?
माँ तुम तो समझती स्त्रीत्व को ,
क्या तुम पर केवल पिता का हक़ है ?
माँ तेरा अंश हूँ मुझे भी हक़ है ।
जब मुझे यों ही निर्जन स्थान में फेंक जाते हैं मुझे ,
तब मैं कसूर पूछने की कोशिश करती हूं ।
कितनी चिल्लाती हूँ ?
और सोचती हूं कि मैं क्या नहीं कर सकती थी ?
जो बेटे कर सकते हैं उससे तो कई गुना ज़्यादा ही ।
चन्द्र प्रकाश बहुगुना
लोग चांद तक पहुंच गये ..... मैं बचपन के खिलौनों से खेलता हूं.... लोग इतने चालाक हो गये कि मत पूछ चन्दर .... मैं अभी भी हालातों के उख...
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