।। लड़की ।।
मुझे भी दुनियाँ देखने का हक़ था ,
फिर क्यों कोख में ही मुझे रौंद दिया जाता है ?
मेरा कसूर क्या है ??
कि मैं बेटी हूं ?
पर ये जो बेटे हैं उनका अस्तित्व भी मुझ से है ।
फिर क्यों माँ मुझे मरने छोड़ दिया जाता है ??
क्यों जन्म देकर मुझे ? ,
माँ की ममता पिता का प्यार सड़कों पर छोड़ देती है ।
क्या मुझे पालना जुर्म है ?
माँ तुम तो समझती स्त्रीत्व को ,
क्या तुम पर केवल पिता का हक़ है ?
माँ तेरा अंश हूँ मुझे भी हक़ है ।
जब मुझे यों ही निर्जन स्थान में फेंक जाते हैं मुझे ,
तब मैं कसूर पूछने की कोशिश करती हूं ।
कितनी चिल्लाती हूँ ?
और सोचती हूं कि मैं क्या नहीं कर सकती थी ?
जो बेटे कर सकते हैं उससे तो कई गुना ज़्यादा ही ।
चन्द्र प्रकाश बहुगुना
प्यार है क्या ? यह प्रश्न हर किसी के मन में आता होगा । कई लोग इसे वासना के तराजू से तौलने की कोशिश करते हैं और कई केवल स्वार्थपूर्ति लेकिन ये सब हमारी गलती नहीं है आधुनिक समाज के मानव का स्वभाव है । लेकिन प्रेम/प्यार इन चीजों से काफ़ी आगे है ,उदाहरण स्वरूप आप एक कुत्ते के पिल्ले से प्यार करते हैं तो आप उस से कुछ आश रखते हो क्या ?और एक माँ से पूछना कि उस का जो वात्सल्य तुम्हारे प्रति है उस प्रेम के बदले वह कुछ चाहती है क्या ? नहीं ना तो तुम इसे स्वार्थ के तराजू से तौलने की क्यों कोशिश करते हो ? मुझे नहीं समझ आता शायद ये मुझ जैसे व्यक्ति के समझ से परे है । और प्यार हम किसी से भी करें बस उसका नाम बदल जाता है --- एक बच्चे का माँ से जो प्यार होता है वह वात्सल्य कहलाता है । किसी जानवर या अन्य प्राणी से किया प्यार दया भाव या आत्मीयता का भाव जाग्रत करता है । अपनी बहन,भाई और अन्य रिश्तों में जो प्यार होता है वह भी कहीं ना कहीं आत्मीयता के अर्थ को संजोए रखता है । और हमारा प्रकृति के प्रति प्रेम उसे तो हम शायद ही शब्दों के तराजू से तोल पाएं क्योंकि उस में कोई भी स्वार्थ नहीं है बस खोने का म
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