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।। कुछ मज़बूरी रही होगी ।।

यों बेवफा ना समझ मुझको ,
मेरी कुछ मजबूरी रही होंगी ।
वरना  यों छोड़ कर ना जाता ,
मेरी भी कुछ आस रही होगी ।

लब पर मोहबत मेरी आज भी है ,
वो बात अलग है कि तुम भूल गई होगी ।
मेरी हार भी तुम जीत भी तुम ,
मैं नहीं जानता तुम्हारी जींदगी में अब जगह क्या होगी ।

अधरों से हँसता हूँ आँखों से रोता हूँ ,
पर नहीं जनता तुमको मेरी याद आई होगी ।।

उर में शूल चुभते उन यादों में जीके ,
तुम तो शायद उस गहन वेदना में भी हँस रही होगी ।

मैं अन्तिम क्षण तक यूँ ही चाहूँगा ,
तुम्हारी खुसी कितनी मेरे दिल में है ये जान गई होगी।।

कवि =
चंद्र प्रकाश बहुगुणा/पंकज /माणिक्य

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