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वर्ण पिरामिड

       (1)

क्यों ?
वृ क्षों
प र्व तों
ने वल्कल 
छो ड़ दिए हैं 
नानी ने कहानी
प न घ ट ने पानी

        (2)
हैं 
अश्क 
चे ह रे 
को भीगोते 
खूब रुलाते 
जिन्दगी तो हुई 
दुःखों का पनघट ।।

           (3)
ना
जाऊं
मय्या
पनघट
कनुवा छेड़े
कलाई मरोड़े
पानी ना भरने दे ।।

           (4)
ना
आज
रहे   वो
   पनघट
जिससे पानी
लाते  झटपट
  बचे हैं मरघट

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रस्मे-वफा के चलते हम एक नहीं हो सकते

इन रस्में-वफा के चलते , हम एक नहीं हो सकते । राह जोहते दिन में , रातों को यादों में जगते । तुम्हारे पापा से जो बात की, उत्तर में वो भी ना बोले । तुम्हारी मम्मी जी तो मुझको निठल्ला , नाकारा क्या - क्या कहते । जग वाले तो हमको यों न मिलने देगे मुझको नीच तुमको उच्च जो कहते । सब की नज़रों में जीरो हूं प्रेयसी , तुम ही जो हीरो कहते । हर पल लबों पर नाम तुम्हारा , ज़्यादातर पक्ति लिखते । मैंने तो निर्णय किया है प्रेयसी , हम प्यार तुम्ही से करते । ये खत लिखा है तुमको रोया हूं लिखते - लिखते । इन रस्में-वफा के चलते , हम एक नहीं हो सकते ।

टापर हूँ मैं ।

मैं टापर हूँ बिहार का ..। देश का भविष्य हूँ । चाणक्य हूँ मैं । मैं ही बूद्ध हूँ । नये ज्ञान का सृजन हूँ मैं ..। मैं ही ज्ञान -विज्ञान हूँ । टापर हूँ मैं । माणिक्य बहुगुना