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दो युगों का संघर्ष

सड़क के पार ..
आलीसान बंगला ,
बंगले में घुटती खुशियाँ ,
एसी की हवा लेता ...
अंग्रेजी कुत्ता ,
कंप्यूटर,मोबाईल ...
में बिजी बच्चे ,
नोटों के बण्डल की ...
गिनती करता बाप ,
अपनी मित्र मंडली के ...
साथ किटी पार्टी करती माँ ,
दो युगों का संघर्ष झेल कर ...
थक चुका ,
कोने में घुटता ..
वह अस्तित्व हीन ...
वृद्ध कौन है ?
शायद किसी का बाप ...
किसी का दादा ,
उसी कोने में ...
आँखों में दुआएँ लिए,
झुर्रियों से भरा चेहरा ,
काँपते हाथ ,
टेढ़ी कमर ...
वो बच्चे सी ...
हरकत करती कौन है ?
शायद किसी की माँ ..
दादी ।
और उसी महल के सामने ..
एक झोपड़ी ,
जिसमें माँ ..
नव शिशु के साथ ,
दिन भर का संघर्ष ..
माँ रात्रि नव शिशु के साथ ,
सूरज दिन में ...
झोपड़ी से अंदर झाँक ...
शिशु को जलाता ,
रात्रि में चाँद ..
बच्चे को गोद सुलाता ,
बरिस भी...
नहलाती ,
गर्म पवन ...
रुलाती ,
माँ खुद ना खाकर ....
बच्चे को खिलाती ,
खुद पानी से ...
भूख मिटाती ,
और दूसरी तरफ ..
महल में भोजन ....
की कोई कमी नहीं,
कुत्ते भी ...
लाख दो लाख का मॉल ...
डकार जाते ,
किसी को दो वक्त का भोजन मिलता नहीं ,
किसी को इतना मिलता है कि खाता नहीं ।
कई बार ..
झोपड़ी में ना...
छोड़ बच्चे को माँ ...
साथ ले जाती ,
वसुधा पर लेटा वह ...
बच्चा मिट्टी के सपने बनाता ...
और बिगड़ता है ,
माँ पसीने से लथपथ ...
मिट्टी से सनी ,
पिता की छाया से हीन ...
वो बच्चा ,
कभी हँसता ...
कभी रोता ,
माँ तसला फावड़ा ..
चलाती ...
कभी - कभी प्यास से ..
व्याकुल बच्चा चिल्लता है ,
माँ पहले पसीना पोछती है ..
अपनी धोती के छोर से ..
सिर में हाथ फेरती .
भाव पूर्ण अश्रु बहाती ..
पानी पिलाती ...
और खुद की धोती के ...
दो भाग करती ...
एक खुद पहनती ...
एक से बच्चे को धूप से बचाती ,
मालिक कई बार जोरों ...
से फटकार लगता ,
और कहता ...
काम नहीं करना है तो ..
आती ही क्यों हो ?
अपने शहजादे को ...
घर रख आया करो ,
मैंने अनाथ आश्रम ...
नहीं खोल रखा है ,
माँ बस मुंह तकती रहती ...
और भाव पूर्ण आँखों से ...
सब बोल जाती ,
माँ एक बच्चे के लिए ..
चाँद को मामा बना देती ,
गगन को ओढनी बना देती ,
धरा को शयनकक्ष ,
दूर खड़े गुब्बारे वाले से ...
गुब्बारा दिलाती ,
कन्धे में रख तुम्हें घुमाती...
ना जाने कितनी ज़िद ...
पूरी करती ...
आभाव में भी ,
चाहे कुछ भी हो ..
माँ बाप के लिए ..
बच्चों की खुसी ...
सर्वोपरि ,
कई बार माँ ...
भगवान से लड़ जाती है ...
और दूसरी तरफ ...
महल में किसी चीज की कमी नहीं ...
बस प्यार की कमी है ,
माँ बाप अनाथों की तरह ..
कोनों में पड़े रहते ...
आँखों से रोते ...
हाथ काँपते ,
संघर्ष को जाया बताते ,
हम क्यों भूल जाते हैं ?
कि हम भी वृद्ध होंगे ,
माँ बाप को आपके धन से कोई ...
लेना देना नहीं ,
बस प्यार चाहिए ..
जो तुम नहीं देते हो ।।

चंद्र प्रकाश बहुगुना/पंकज / माणिक्य

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रंगे ग़ुलाब सी तुम ... सपनों का सरताज़ सी तुम ... मैं यों ही सो जाना चाहता हूँ .. जब से सपनों में आई हो तुम .... ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य

"संस्कृत" तुझ से कौन नहीं चिरपरिचित

खग विहग करते गुण गान , शिष्य रखते गुरु का मान .. हमने पूजा तुझको वेद पुराण , स्वार्थ हित के लिए निकला नया नीति विज्ञान ।। उन्मूलन के लिए बन गए भाषा विज्ञान , क्यों मिलते हैं कुछ मृत अवशेष .. तुझ बिन क्या है औरों में विशेष , क्या नहीं था इसके पास ... क्या रही होगी हम को इससे आस , लेकिन तुझ से कौन नहीं चिरपरिचिय ।। हर घर में होता गुण गान .. हर साहित्य में होता मान ... फिर क्यों नहीं करते तेरा सजीव गान , क्यों वेद , पुराण उनिषद, षड्दर्शन में है मान .. लेकिन तुझ से कौन नहीं चिरपरिचित ।।