तुम से हजारों बार मिला हूँ ..
हर बार मिलने के लिए बेचैन रहता हूँ ..
सुन रही हो ना तुम ?
वो देखो ..
तुम देख रही हो ना ?
सूरज जो शर्मा रहा है ..
हम को देख और छुप गया है माँ के पल्लू से ..
वो दूर खड़े हंसों के जोड़ों को देख रही हो ना..?
हमें उन से सीखना चाहिए ।
प्रेम बिना आवरण का विशुद्ध ..
देखो पर्वतों का आकाश को चूमना ....
तितलियों का पराग में मद मस्त होना ..
उस पेड़ के पत्तों के राग सुनो ...
तुम्हारी तरह गाते हैं ...
चलो मैं तुम को तुम मुझ को पढ़ो ..
हँसो तुम हँसो मुझे पढ़ कर ..
तुम्हारा चन्दन देह ..
दिल मेरी देह की औषधी है ।
बस यूँ ही मिलो बस ...
और यूँ ही हँसो ...
माणिक्य बहुगुना
।। सम्भावना ।। सम्भावना शब्द संस्कृत में सम उपसर्ग पूर्वक भू सत्तायाम् धातु से ण्यन्त् में ल्युट और टाप् प्रत्यय करने पर निष्पत्ति होती है । सम्भावना जीव...
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