तुम से हजारों बार मिला हूँ ..
हर बार मिलने के लिए बेचैन रहता हूँ ..
सुन रही हो ना तुम ?
वो देखो ..
तुम देख रही हो ना ?
सूरज जो शर्मा रहा है ..
हम को देख और छुप गया है माँ के पल्लू से ..
वो दूर खड़े हंसों के जोड़ों को देख रही हो ना..?
हमें उन से सीखना चाहिए ।
प्रेम बिना आवरण का विशुद्ध ..
देखो पर्वतों का आकाश को चूमना ....
तितलियों का पराग में मद मस्त होना ..
उस पेड़ के पत्तों के राग सुनो ...
तुम्हारी तरह गाते हैं ...
चलो मैं तुम को तुम मुझ को पढ़ो ..
हँसो तुम हँसो मुझे पढ़ कर ..
तुम्हारा चन्दन देह ..
दिल मेरी देह की औषधी है ।
बस यूँ ही मिलो बस ...
और यूँ ही हँसो ...
माणिक्य बहुगुना
इन रस्में-वफा के चलते , हम एक नहीं हो सकते । राह जोहते दिन में , रातों को यादों में जगते । तुम्हारे पापा से जो बात की, उत्तर में वो भी ना बोले । तुम्हारी मम्मी जी तो मुझको निठल्ला , नाकारा क्या - क्या कहते । जग वाले तो हमको यों न मिलने देगे मुझको नीच तुमको उच्च जो कहते । सब की नज़रों में जीरो हूं प्रेयसी , तुम ही जो हीरो कहते । हर पल लबों पर नाम तुम्हारा , ज़्यादातर पक्ति लिखते । मैंने तो निर्णय किया है प्रेयसी , हम प्यार तुम्ही से करते । ये खत लिखा है तुमको रोया हूं लिखते - लिखते । इन रस्में-वफा के चलते , हम एक नहीं हो सकते ।
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