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आधुनिक शिक्षा

मैं विश्वविद्यालय कभी गया नहीं , राजनीति और राजनेताओं से बहुत दूर हूँ ... लेकिन इतना समझता हूँ कि देश बट रहा है , हर कोई हीरो बनना चाह रहा है ,चाहे वो फुटपात में लोगों को कुचलकर क्यों ना बनना पड़े .... । कहीं दलित  कहते हैं हम महिषसुर के वंशज हैं ये नवरात्रे बंद करो दुर्गा के लिए अपमानजनक शब्द का प्रयोग करते हैं .. और देश के हर वर्ग को आरक्षण चाहिए आरक्षण की ओट में देश की संपत्ति बर्बाद करते हैं ...कितने लोग अशिक्षा के लिए धरने पर बैठते हैं और कितने लोग भूख के लिये धरने पर बैठते हैं , कितने लोग मानवों को बचाने की बात करते हैं बस तेरी गाय मेरा कुत्ता तेरी बकरी मेरी बिल्ली देश भक्त देश द्रोही इस चक्कर में राजनेता नवयुवकों को फसाते हैं और वो नव युवक उस जाल में सहजता से फसते जाते हैं ...। अन्न जब जीवन के लिए पर्याप्त है तो हत्या क्यों ? और अगर वही जानवर इंसान को खा जाता है तो कोहराम क्यों ? दिल्ली विश्वविद्यालय में जो हुआ वो गलत हुआ मैं पूरी जानकारी से दूर हूँ लेकिन उमर ख़ालिद पर अगर देश द्रोही गतिविधियों में सम्मिलित होने का शक था और आधे से अधिक लोग उसके ख़िलाफ़ थे तो उसे क्यों आमन्त्रित किया ? इस देश में ज्ञानियों की क्या कमी है जो नवयुवकों का मार्गदर्शन करे ?
और ख़ालिद का जेएनयू में भाषणबाजी के अलावा कोई भी एक योगदान हो तो उसको बुलाना जायज़ था , लेकिन गुरमेहर कौर को अगर अपशब्द कहे गए , तो वो भी सही नहीं , क्योंकि वो एक फ़ौजी की बेटी ही नहीं इस देश की बेटी भी है ,और उस के उस स्लाइड वाले वीडियो जो गत वर्ष का था उसे अन्यथा लेना भी शोभनीय नहीं था । मैं इस देश का विभाजन विश्वविद्यालयों से देख कर हैरान होता हूँ ...जहाँ जोड़ने की बात सीखनी चाहिए वहीं तोड़ने की बात सीखी जा रही है .. इसी लिए हम आज़ाद हुए थे कि एक दिन लड़ें , मरें ,मारें ? नहीं ना ? हमें अगर वैश्विक स्तर पर भारत को आगे ले जाना है तो इन चीजों से आगे बढ़ना होगा ... वरना राजनेता विद्या के मंदिर को भी रंगमंचीय वस्तु बना देंगे , जिस के कारण कोमल हृदय में भी अभिनय ही होगा ...? अहिंसा जिस भारत का धर्म था वहाँ अध्यापक को मारा जाता है ... या तो शिक्षा मूल्यपरक नहीं है या हम शिक्षित नहीं हैं ? अंतरंग में सनी लियोनी जैसे लोगों की वीडियो बडे चाव से देखने वाले कहते हैं कि ये भारतीय संस्कृति का सर्वनाश कर रही है ...हम ही हैं इस के सर्वनाश की वज़ह ...। मुझे मेरे विश्वविद्यालय ना जाने की कभी कभी खुसी भी होती है कि मैं सरल हूँ सहज हूँ , मैं अखंड और एक उज्जवल और सम्पन्न भारत की कामना करता हूँ ...।
जय हिन्द
माणिक्य / पंकज / चंद्र प्रकाश

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प्यार है क्या ? यह प्रश्न हर किसी के मन में आता होगा । कई लोग इसे वासना के तराजू से तौलने की कोशिश करते हैं और कई केवल स्वार्थपूर्ति लेकिन ये सब हमारी गलती नहीं है आधुनिक समाज के मानव का स्वभाव है । लेकिन प्रेम/प्यार इन चीजों से काफ़ी आगे है ,उदाहरण स्वरूप आप एक कुत्ते के पिल्ले से प्यार करते हैं तो आप उस से कुछ आश रखते हो क्या ?और एक माँ से पूछना कि उस का जो वात्सल्य तुम्हारे प्रति है उस प्रेम के बदले वह कुछ चाहती है क्या ? नहीं ना तो तुम इसे स्वार्थ के तराजू से तौलने की क्यों कोशिश करते हो ? मुझे नहीं समझ आता शायद ये मुझ जैसे व्यक्ति के समझ से परे है । और प्यार हम किसी से भी करें बस उसका नाम बदल जाता है --- एक बच्चे का माँ से जो प्यार होता है वह वात्सल्य कहलाता है । किसी जानवर या अन्य प्राणी से किया प्यार दया भाव या आत्मीयता का भाव जाग्रत करता है । अपनी बहन,भाई और अन्य रिश्तों में जो प्यार होता है वह भी कहीं ना कहीं आत्मीयता के अर्थ को संजोए रखता है । और हमारा प्रकृति के प्रति प्रेम उसे तो हम शायद ही शब्दों के तराजू से तोल पाएं क्योंकि उस में कोई भी स्वार्थ नहीं है बस खोने का म

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रंगे ग़ुलाब सी तुम ... सपनों का सरताज़ सी तुम ... मैं यों ही सो जाना चाहता हूँ .. जब से सपनों में आई हो तुम .... ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य