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जूझ

जूझ ...
   कौन नहीं जूझ रहा है यहां ?
   एक माँ , या बाप , या वो गाय
, या नवयुवक ,युवतियाँ ..?
  कोई तंगहाली से , कोई लाचारी से ,
  कोई स्कूली शिक्षा से तो कोई ....
  आरक्षण , आतंक से ...
  एक वर्ग तब जूझ रहा था और आज भी एक वर्ग जूझ रहा है ..
   अन्नदाता को गोली मिलती है ,
    फ़ौजियों को खून की होली .
     कश्मीर आतंक में जीता है ,
    यहाँ का बच्चा बच्चा दुवाओं से जीत है ,
जूझना एक बाप को भी पड़ता है ..
और माँ को भी ...
    नवयुवक जूझ रहा है रोजगार के लिए ,
     जूझना ही पड़ता है हर किसी को ..
    माँ का खुद ना खा कर .. 
    पिता का खुद ना सोकर ..
     हर कदम , हर डगर ...

माणिक्य बहुगुणा

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रस्मे-वफा के चलते हम एक नहीं हो सकते

इन रस्में-वफा के चलते , हम एक नहीं हो सकते । राह जोहते दिन में , रातों को यादों में जगते । तुम्हारे पापा से जो बात की, उत्तर में वो भी ना बोले । तुम्हारी मम्मी जी तो मुझको निठल्ला , नाकारा क्या - क्या कहते । जग वाले तो हमको यों न मिलने देगे मुझको नीच तुमको उच्च जो कहते । सब की नज़रों में जीरो हूं प्रेयसी , तुम ही जो हीरो कहते । हर पल लबों पर नाम तुम्हारा , ज़्यादातर पक्ति लिखते । मैंने तो निर्णय किया है प्रेयसी , हम प्यार तुम्ही से करते । ये खत लिखा है तुमको रोया हूं लिखते - लिखते । इन रस्में-वफा के चलते , हम एक नहीं हो सकते ।

टापर हूँ मैं ।

मैं टापर हूँ बिहार का ..। देश का भविष्य हूँ । चाणक्य हूँ मैं । मैं ही बूद्ध हूँ । नये ज्ञान का सृजन हूँ मैं ..। मैं ही ज्ञान -विज्ञान हूँ । टापर हूँ मैं । माणिक्य बहुगुना