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जूझ

जूझ ...
   कौन नहीं जूझ रहा है यहां ?
   एक माँ , या बाप , या वो गाय
, या नवयुवक ,युवतियाँ ..?
  कोई तंगहाली से , कोई लाचारी से ,
  कोई स्कूली शिक्षा से तो कोई ....
  आरक्षण , आतंक से ...
  एक वर्ग तब जूझ रहा था और आज भी एक वर्ग जूझ रहा है ..
   अन्नदाता को गोली मिलती है ,
    फ़ौजियों को खून की होली .
     कश्मीर आतंक में जीता है ,
    यहाँ का बच्चा बच्चा दुवाओं से जीत है ,
जूझना एक बाप को भी पड़ता है ..
और माँ को भी ...
    नवयुवक जूझ रहा है रोजगार के लिए ,
     जूझना ही पड़ता है हर किसी को ..
    माँ का खुद ना खा कर .. 
    पिता का खुद ना सोकर ..
     हर कदम , हर डगर ...

माणिक्य बहुगुणा

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