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विविधता

धर्म , जात , रंग , नश्ल , वर्ण , लिङ्ग , भाषा , शारिरिक विविधता व अन्य के आधार पर मानव को मानव से विभक्त कर एक विशेष दायरे में डाल जा रहा है ।  कुछ उस का फायदा उठा कर पेट पाल रहें हैं , कुछ आवेग में आ कर मारने काटने को उतारू हैं , कुछ पूर्व में हुए अत्याचार को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देख रहे हैं ,  कुछ सच्चाई जाने बिना खुद कानून बने फिर रहे हैं , इस देश ने आज़ाद , कलाम , बोस , पटेल जैसे लोग को देखे था । और आज आतंकवादी , बलात्कारी , चोर - उचक्के देख रहा है ।
आजाद हम केवल अंग्रेजों से हुए हैं .. खुद की बुराइयों से नहीं और ना ही ऊपर वर्णित शब्दों से , पुरूष सिगरेट से धुँआ उड़ेले तो सभ्य और महिला ऐसी गुस्ताखी करे तो असभ्य ।
कैसी आज़ादी ?
अभी जो हिमांचल में हुआ उस से बहुत आहत हूँ ,
हम केवल इस लिए आज़ाद हुए थे क्या ?
और क्या स्त्री का मतलब केवल काम ( भोग ) है ?
लोग तर्क देते हैं पक्ष में कि लड़की ने कपड़े छोटे पहन रखे थे , वो लड़कों के साथ घूमती थी औऱ न जाने क्या क्या .?
क्या लड़के के छोटे कपड़े या कम कपड़े पहनने से किसी लड़की को कोई फर्क पड़ा ? क्या उन्होंने खुद का आपा खो कर किसी का बलात्कार किया ?
खुद की छोटी सी बच्ची को देख कर बाप का  कभी काम जगा नहीं ना ?
क्योंकि हम मनोवैज्ञानिक दृष्टि से वो सब सोचते नहीं , और जो सोचते हैं वो आपनी बच्चियों को भी नहीं छोड़ते ...?
ऐसे कुछ घटनायें रोज अखबारों की शान बनती हैं , जबकि ये हमारे समाज के लिए घृणास्पद है । हिमांचल में छः लोगों ने एक स्कूली बच्ची के साथ ये बर्बरता की क्या ये समाज को स्वीकार है  ? नहीं ...ऐसे घटनायें रोज होती हैं कुछ प्रकट होती हैं कुछ दब जाती हैं और कुछ दबा दी जाती हैं ।  कैसे आज़ादी की बात करें भला , और अभी तक गुनहगारों की कोई खबर नहीं है इस पर हमारे राजनेता कहते हैं बच्चों से गलती हो जाती है , ?
और हमें धर्म , जात , रंग , नश्ल , वर्ण , लिङ्ग , भाषा , शारिरिक विविधता के आधार पर बटते हैं और हम ख़ुशी - ख़ुशी वोट भी दे देते हैं , ।ऐसी घटनाओं को सुन का हर माँ बाप की रूह काँप जाती है । उचित दंड की कमी भी इसे दिनप्रतिदिन फैला रहा है । आप अपनी बिटिया को खूब समझती हो / समझते हो कि रात को घर से बाहर मत जा , इतनी देर में कहाँ से आई , और न जाने क्या क्या लेक्चर देते/देती हो कभी कभार लड़कों को भी समझ दिया करो , जिन्होंने बलात्कार किया वो भी किसी के भाई किसी के बेटे होंगे .. उन का ये कदम उठाने के पीछे माँ बाप का हाथ है , लैंगिक असमानता उनके दिलों दिमाग में भरी है और वही वो अपने बेटे में भर देते हैं ..। हम हँसते हैं दूसरों के साथ बुरा हुआ तो और तर्क देते हैं कि वो इसी लायक था , तो आप किसी लायक हो ..?
किसी को भी किसी को मारने और शोषण करने का अधिकार नहीं है ..। इस देश को विज्ञान कम धर्म , जात , रंग , नश्ल , वर्ण , लिङ्ग , भाषा , शारिरिक विविधता  पढ़ाई जाती है ... विज्ञान पढ़िए , और पढ़ाइये ।
और इन चीजों से बाहर निकालिये , और मेरी दृष्टि में धर्म का मतलब निजता है उसे मत थोपिए किसी पर , खुस रहिये , दूसरों को खुस रहने दीजिए .. जो आपके लिए अप्रिय हो उसे दूसरे को मत दीजिये ।
आप उसके स्थान में खुद को रख के देखिये ..।

माणिक्य बहुगुणा

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प्रेम का सात्विक अर्थ

प्यार है क्या ? यह प्रश्न हर किसी के मन में आता होगा । कई लोग इसे वासना के तराजू से तौलने की कोशिश करते हैं और कई केवल स्वार्थपूर्ति लेकिन ये सब हमारी गलती नहीं है आधुनिक समाज के मानव का स्वभाव है । लेकिन प्रेम/प्यार इन चीजों से काफ़ी आगे है ,उदाहरण स्वरूप आप एक कुत्ते के पिल्ले से प्यार करते हैं तो आप उस से कुछ आश रखते हो क्या ?और एक माँ से पूछना कि उस का जो वात्सल्य तुम्हारे प्रति है उस प्रेम के बदले वह कुछ चाहती है क्या ? नहीं ना तो तुम इसे स्वार्थ के तराजू से तौलने की क्यों कोशिश करते हो ? मुझे नहीं समझ आता शायद ये मुझ जैसे व्यक्ति के समझ से परे है । और प्यार हम किसी से भी करें बस उसका नाम बदल जाता है --- एक बच्चे का माँ से जो प्यार होता है वह वात्सल्य कहलाता है । किसी जानवर या अन्य प्राणी से किया प्यार दया भाव या आत्मीयता का भाव जाग्रत करता है । अपनी बहन,भाई और अन्य रिश्तों में जो प्यार होता है वह भी कहीं ना कहीं आत्मीयता के अर्थ को संजोए रखता है । और हमारा प्रकृति के प्रति प्रेम उसे तो हम शायद ही शब्दों के तराजू से तोल पाएं क्योंकि उस में कोई भी स्वार्थ नहीं है बस खोने का म

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रंगे ग़ुलाब सी तुम ... सपनों का सरताज़ सी तुम ... मैं यों ही सो जाना चाहता हूँ .. जब से सपनों में आई हो तुम .... ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य