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आज की शिक्षा

क्या विश्वविद्यालयी शिक्षा ऐसे ही होती है ? क्या जहाँ देश को बरबाद और देश के टुकड़े करने की बात की जा रही है उसी का नाम विश्विद्यालय है ?  ये किस गुट का है किस ने किया ये ना मैं जानता हूँ ,  लेकिन भारत की कानून व्यवस्था इतनी कमजोर तो कभी भी नहीं थी , और विश्वविद्यालय प्रशसन क्या कर रहा है ? केवल उसका काम इतना भर है कि स्कूल में दाखिला ...मैं अचम्भित हूँ इस घटना से कि विद्यालयों के युवा देश की तरक्की में साथ ना दे कर सब्सिडी उड़ा रहे हैं और देश के विनाश की योजना बना रहे हैं और सरकारें हाथ में हाथ धरे विपक्ष के नेताओं का मुँह तक रहे हैं और विपक्षी उन की पीठ थपथपाती है जो मुज़रिम है ... क्यों ऐसे मुद्दे में भी राजनीति होती है ? क्यों ऐसे मुद्दे में पार्टियां एक नहीं होती ..? पार्टियाँ आती जाती रहेंगी किंतु ये मेरे देश का मान सब का कर्त्तव्य है... जिसे हाईकोर्ट मुज़रिम कह कर सजा देती है उसे ये लोग शहीद कहतें हैं और ऐसे संगठन से जुड़े हुए लोगों को दिल्ली विश्वविद्यालय में ज्ञान का पाठ पढ़ाने अध्यापक बुलाते हैं .. धन्य हो ऐसी शिक्षा प्रणाली ...! और कश्मीर की आज़ादी चाहिए इन को ऐसे ही रहा तो हर राज्य से आवाज़ आएगी कि हमें अलग देश चाहिए ...।

हा धिक ...
माणिक्य

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प्रेम का सात्विक अर्थ

प्यार है क्या ? यह प्रश्न हर किसी के मन में आता होगा । कई लोग इसे वासना के तराजू से तौलने की कोशिश करते हैं और कई केवल स्वार्थपूर्ति लेकिन ये सब हमारी गलती नहीं है आधुनिक समाज के मानव का स्वभाव है । लेकिन प्रेम/प्यार इन चीजों से काफ़ी आगे है ,उदाहरण स्वरूप आप एक कुत्ते के पिल्ले से प्यार करते हैं तो आप उस से कुछ आश रखते हो क्या ?और एक माँ से पूछना कि उस का जो वात्सल्य तुम्हारे प्रति है उस प्रेम के बदले वह कुछ चाहती है क्या ? नहीं ना तो तुम इसे स्वार्थ के तराजू से तौलने की क्यों कोशिश करते हो ? मुझे नहीं समझ आता शायद ये मुझ जैसे व्यक्ति के समझ से परे है । और प्यार हम किसी से भी करें बस उसका नाम बदल जाता है --- एक बच्चे का माँ से जो प्यार होता है वह वात्सल्य कहलाता है । किसी जानवर या अन्य प्राणी से किया प्यार दया भाव या आत्मीयता का भाव जाग्रत करता है । अपनी बहन,भाई और अन्य रिश्तों में जो प्यार होता है वह भी कहीं ना कहीं आत्मीयता के अर्थ को संजोए रखता है । और हमारा प्रकृति के प्रति प्रेम उसे तो हम शायद ही शब्दों के तराजू से तोल पाएं क्योंकि उस में कोई भी स्वार्थ नहीं है बस खोने का म

।। उत्तराधिकारी ।।

।। उत्तराधिकारी ।। मेरे मरने के बाद मेरी पुस्तकें किस की होंगी ये सोच कर मैं कई मार यमराज को धोखा दे चुका हूँ । लेकिन इस बार यम के दूत चेतावनी देके गये हैं ....इस बार मरना ही होगा मुझे लेकिन अपना उत्तराधिकारी किसी बनाऊँ अपनी पुस्तकों का ये जान कर चिन्तित हो उठता हूँ । उत्तराधिकारी के लिए मैंने विज्ञापन भी निकाला लेकिन कई आये लेकिन भाग गये । बेटा बोलता है कि इस भौतिक युग मैं जहाँ सब काम कम्पयूटर से हो जाता है पुस्तकों का क्या करें । लेकिन मेरी रुह बसी है पुस्तकों में । बस अब इन पुस्तकों का उत्तराधिकारी चाहिए । क्या तुम बनोगे मेरे पुस्तकों के उत्तराधिकारी ? क्योंकि मृत्यु हर पल निकट है । माणिक्य बहुगुना

।। तुम ।।

रंगे ग़ुलाब सी तुम ... सपनों का सरताज़ सी तुम ... मैं यों ही सो जाना चाहता हूँ .. जब से सपनों में आई हो तुम .... ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य