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प्रेमी को पत्र

चाहता तो मैं भी हुँ हम दोनों एक हो जाएं ,
जैसे पानी में चीनी घुल जाती है वैसे ,
बस एक हो लें , मिल जाएं , शर्बत बन जायें ,
जैसे बदल जमी में उतार कर पर्वतों को खुद के बाहों में भर देता है ,
जैसे रंग पानी में घुल जाता है , कभी तुम रंग बनना कभी मैं , और कभी तुम बर्फ बनना में प्रेम की आँच से तुम्हें पानी बना दूंगा और ख़ुद रंग बन कर घुल जाऊंगा तुम में ,
कभी तुम जमी बनना और मैं बदल ,
तुम्हारे तन और मेरे तन की दूरी ऐसी हो जैसे मेरा अपना कान मेरा मुँह , मेरे पैर ,
मन से इतने पास हों जैसे ईश्वर ,
ये प्रेम इतना शाश्वत हो कि ईश्वर आके बनाये जोड़ी हमारी ,
हम बस प्रेम करें कृष्ण की तरह ,
और अगर इससे इतर भी हो तो हमें मंजूर हो ,
हम एक थे , एक हैं , एक रहेंगे ,
बस नहीं मिले हैं अब तक तो मिट्टी के पुतले ,
वो नश्वर हैं ,
                     तुम्हारा प्रेमी
                     माणिक्य बहुगुणा

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