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बस एक शिष्य चाहिए

देव जिसके समकक्ष हैं वो गुरु है ..
जो शिष्य के रोम-रोम में बसता वो गुरु है ,
माँ ..
पिता ..
धरणी ...
     पवन ...
  नन्हीं चींटी ...
ढलता सूरज ...
अमावस का चाँद...
            काँपते पत्ते ....
बर्फ से ढका घरौंदा ...
मधुमक्खी का छत्ता ...
      सांप , मकड़ी ...
         नदी , नाले ...
           चड़ियाँ......
प्रकृति , पर्वत ........
जीवन , मरण ....
संभाषण ,संभव ....
असत्य , सत्य......
बांज .. तितलियाँ ....
मुर्गा .....
गाय दोहती माँ ...
बच्चे को दूध पिलाती गाय ...
बच्चों की देखभाल करता कुत्ता ...
बच्चों को भोजन करती बिल्ली ..
धरती का रोम - रोम गुरु है ......
बस एक एकलव्य जैसे शिष्य चाहिए ।।

चंद्र प्रकाश बहुगुना / माणिक्य / पंकज

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