।। सत्ताधारी सास ।।
नाम सुन कर लग रहा होगा कि इस टॉपिक में भी लिखने के लिए कुछ बचा है क्या ?
सब जानते हैं इस शब्द के मर्म को , चाहे वो भारतीय पुरुष हो या महिला । इस शब्द के मर्म को शायद ही कोई ना जानता हो , लेकिन हमारे उत्तराखंड में विशेष कर पहाड़ी तो सास का मुँह देख कर भी क्याप चिताते हैं और इसके अर्थ में जो मर्म एक बहु एक जँवाई समझता है शायद ही कोई और समझता हो ये मेरा मानना है ।
कभी सास भी बहू थी टाईप के आदर्शों से काफी अच्छी कहानी होती है यहाँ घर-घर की ।
यहाँ यह वक्त हर किसी के साथ आता है पर जो भी हो मस्त ठहरा ...
सास का सुबह-सुबह बहू को नौला भेजना बहू का कई बार खुंदक में आना और उसी दौरान अपनी नव विवाहित सहेलियों से चुगला करना एक आदर्श ही प्रतीत होता है जिस की एक छोटी सी झलक रेखांकित करने की कोशिश
- किले तू के तेर सास कतुक बजी उठे दें ?
भगुली सची जे कअ कै छी तो तीन बाजी बटिक उठ रइ ।
किले की करेंछि उबख़त बटिक ?
किले कतुक काम हुनि पैली पाणि गरम करो सौर क नवा सास क बिस्तर में चाहा पिनक अमल छ उनन क चहा दे ,फिर उ बजर पड़ी रो गोठ में भैसक धिंगाडक दूद ह्त्या ल्याई , तिहार दिन छाऑ बनुन है उ बनाई कतुक काम हुनि वे !
और ना जाने क्या क्या ?
लेकिन इन की दोस्ती पक्की होती है चाहे ये पिरोल लेना भी हो तो साथ जाते हैं । जो सास को बड़ा खलता है और सम्बोधन में बोलती है सास -
किले हगणो ले उई दगड़ी जाली !
पर उन लोगों का भी साथ अटूट होने वाला ठहरा ।
सत्ताधारी सास खुद को कहीं की रानी से काम थोड़ी समझने वाली ठहरी और ना ही बहू खुद को ।
कई कई सास तो बहुओं के अपने खबरी होते हैं जो एक की चुगली दूसरे को कहा करते थे ...शायद उन का काम ही यही होता है ।
और फिर सास जम कर गाई-ढ़ाई करने वाली ठहरी अगर बहू सीधी हो तो सुन लेती लेकिन अगर सास से भी खतरनाक होती तो वो भी जम कर जे - ते कहती थी ।
तेरी माँ .....।
बाब .........।
और ना जाने क्या लेकिन सत्ताधारी सास भी कहाँ कम होती थी वो भी द्वि आगु अघिल होने वाली ठहरी ।
कहीं-कहीं तो खसम के कान भरना भी इन बहुओं का काम होता है और कहीं कहीं यही उल्टा भी होता था मतलब माँ भरती थी कान बेटे का और कहीं-कहीं दोनों तो एक पति एक बेटे से पूछो कि क्या कोई उससे बढ़ कर धर्म संकट आया उन के जीवन में शायद उस का उत्तर ना में होगा ।
पर जो भी हो लेकिन इस सत्ताधारी सास से एक जवाँई भी डरता था ।
वो तो उन जवाइयों से पूछ कर देखो जो पुराने समय में अपनी पत्नी को लेने जाते थे तो क्या हालत होती थी ?
लोग इसी डर से ससुराल ही नहीं जाते थे ।
और इतना ही नहीं ससुराल में जम कर आदरी खदरी होने वाली ठहरी फिर भी लोग सास को छअव चिताने वाले ठहरे ..... साली होने के बावजूद भी ।
सौर का हस्तक्षेप तो न बराबर होने वाला ठहरा ... लेकिन सास महारानी जसी जवाईं साँस में अटकी रहने वाली ठहरी ।
पर जो भी हो सास का बहू से सिर में गाय का घी लगवाना भी एक रण से काम जो क्या ठहरा ।
कई बार सास के बलात् प्रयोग से बहु को कपड़े बदल कर खाना बनाना भी मस्त हुनि वाला ठहरा ।
ठंडाक वील कपड़ बदलने मन कैक करूँ हो दाज्यू लेकिन सास ...मर रो ...बदलन पड़नी कपड़ ।
सास से बिन पुछी बाहर भी नहीं जाना ठहरा हो ।
लिखने को बहुत है मगर समय आभाव के कारण विराम दे रहा हूँ आगे इसे पूर्ण करने का प्रयास करूँगा ।
चंद्र प्रकाश / माणिक्य/ पंकज बहुगुना
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