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।। बस एक ब्यूटीफुल पर्सनल वाइफ चाहिए ।।

ना खटर पटर ना ही सटर पटर ...
ना चटर बटर ना ही दुकान की कोई मटर ....,
और ना दहेज़ का मैटर ना ही लव लैटर ..,
बस एक ब्यूटीफुल पर्सनल वाइफ चाहिए ।।

ना मन्त्रों का झमेला ..ना जाती धर्म का मेला ।
ना ही गहनों का ठेला ..ना बाराती ना वो मेला ..
ना ही कोई गुरु ना चेला ...ना बैंड ना दिखावट का रेला ...,
बस एक ब्यूटीफुल पर्सनल वाइफ चाहिए ।।

ना कोट सूट .... ना नोट बूट .,                                        ना जंग संग  .....ना ही कोई लूट ,
ना रिश्तों की दिखलावट ... ना ही झूट- मूट ,
ना गाड़ी ना बंगला ... गाड़ी का कोई रूट-सूट...,
बस एक ब्यूटीफुल पर्सनल वाइफ चाहिए ।।

ना लोचा ना सोचा ... ना अच्छा ना मैं लुच्चा ..
ना गली गली का आशिक मैं टुच्चा ..,
आना कमाता ढाई का खर्चा ...,
ना चाँद साँद ना बदल बन गरजा ..,
बस एक ब्यूटीफुल पर्सनल वाइफ चाहिए ।।

गली गली में ढूढ़ा ...ना जाने रब रूठा ..
कभी पापा मम्मी .. कभी दादा दादी ..
कभी मामा मामी ... कभी नाना नानी ..
दे दे कर उत्तर अब  दिल टुटा ...
बस एक ब्यूटीफुल पर्सनल वाइफ चाहिए ।।

काली पीली .... उजली कुछ बंदरिया सी ...
गुस्से से पीली पीली ... खुसी में नीली नीली ...
भूरी भूरी बकरी सी आँखे वाली ...
कुछ शर्मीली कुछ लाज दिल्ली वाली ...
बस एक ब्यूटीफुल पर्सनल वाइफ चाहिए ।।

चंद्र प्रकाश बहुगुना / माणिक्य / पंकज

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प्यार है क्या ? यह प्रश्न हर किसी के मन में आता होगा । कई लोग इसे वासना के तराजू से तौलने की कोशिश करते हैं और कई केवल स्वार्थपूर्ति लेकिन ये सब हमारी गलती नहीं है आधुनिक समाज के मानव का स्वभाव है । लेकिन प्रेम/प्यार इन चीजों से काफ़ी आगे है ,उदाहरण स्वरूप आप एक कुत्ते के पिल्ले से प्यार करते हैं तो आप उस से कुछ आश रखते हो क्या ?और एक माँ से पूछना कि उस का जो वात्सल्य तुम्हारे प्रति है उस प्रेम के बदले वह कुछ चाहती है क्या ? नहीं ना तो तुम इसे स्वार्थ के तराजू से तौलने की क्यों कोशिश करते हो ? मुझे नहीं समझ आता शायद ये मुझ जैसे व्यक्ति के समझ से परे है । और प्यार हम किसी से भी करें बस उसका नाम बदल जाता है --- एक बच्चे का माँ से जो प्यार होता है वह वात्सल्य कहलाता है । किसी जानवर या अन्य प्राणी से किया प्यार दया भाव या आत्मीयता का भाव जाग्रत करता है । अपनी बहन,भाई और अन्य रिश्तों में जो प्यार होता है वह भी कहीं ना कहीं आत्मीयता के अर्थ को संजोए रखता है । और हमारा प्रकृति के प्रति प्रेम उसे तो हम शायद ही शब्दों के तराजू से तोल पाएं क्योंकि उस में कोई भी स्वार्थ नहीं है बस खोने का म

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