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अधिक आसक्ति मनुष्य के लिए विष है ..


अधिक आसक्ति मनुष्य के लिए विष है ...ये पंक्ति लिखते लिखते मेरी कलम रुक गई ...फिर फेसबुक का खाता खोल कर कुछ मनोरंजन करने का मन किया ...

कुछ समय से मैं भी फेसबुक पर सक्रिय
हूँ किंतु यहाँ सक्रिय होने का फ़ायदा भी कुछ नहीं है सब लोग अपनी दुकान चमकाने में लगे हैं कई इसे भी धर्म या जाति का अखाड़ा या फिर  अधिक उम्र के वृद्धों के कमेंट पढ़ कर हँस पड़ता हूँ क्योंकि पुत्री समान नव युवती पर आसक्ति पूर्ण कमेन्ट करते हैं ....जय हो ऐसी जवानी को ।
मुझे और चीजो से इतना फ़र्क नहीं पड़ता है किन्तु ये तो असहनीय होता है कि एक 50-60 वर्ष का व्यक्ति एक 18-30 वर्ष की युवती की छवि या मुख्य पृष्ट में अशक्ति पूर्ण कमेंट करें ..., कमेंट करना कोई गलत नहीं किन्तु आसक्ति पूर्ण सर्वथा अनुचित ही जान पड़ता है ...क्योंकि अगर वो खुद चरित्रवान नहीं बन पाये तो क्या आप सोचते हैं कि अगली पीढ़ी सभ्य या संस्कृतवान होगी मुझे तो नहीं लगता है और वो अपने बच्चों को क्या सीख देते होंगे नहीं पता ।
इस लिए अधिक आसक्ति सही नहीं है आसक्ति करो किन्तु अपनी पत्नी बच्चों से स्वजनों से ... और हम जैसे युवकों को भी उपदेश देते हुए भी ऐसे ही वृद्ध युवक दिखाई देते हैं और उपदेश के वचन इस प्रकार होते हैं --
बेटा वो भी किसी की बेटी किसी की बहन है ... हम को पता है किन्तु आप कब समझंगे नहीं जनता ... मैं ये भी कतई नहीं कह रहा कि सारे वृद्ध ऐसे हैं किन्तु ऐसे भी हैं मैं ये बताने की कोशिश कर रहा हूँ ...।
जैसे सारे युवक अविवेकी होते हैं ये कहना सार्थक नहीं है उसी प्रकार ...।
कई बार मैंने पब्लिक प्लेस में भी इस प्रकार देखा है किन्तु महिला / स्त्री लज्जा या उन की उम्र देख कुछ नहीं कहती है किन्तु होता है ... ।
और इतना ही नहीं आज कल चाहे बच्चा हो या युवक या वृद्ध सब बिना गाली दिए तो कुछ काम ही नहीं करते हैं जब तक तेरी माँ ...., तेरी बहन नहीं कह लेते हैं तब तक शायद काम भी नहीं होता है ...अपशब्दों के प्रति हमारी लिप्सा साफ़ दिखाई देती है ...।
अगर वहीं सुशब्द की बात करेंगे तो हम लोग नाक मुँह बनाते हैं जैसे किसी ने तीख़ी मिर्च खिला दी हो ।
और पुरुष ही क्या महिलाएं भी इसमें शामिल हैं ... । और हनी सिंह जैसे आदर्शवादी पुरुष के मनोरंजक भजनों में भी अधिक ठुमके महिलाएं ही लगती हैं ..... जिस में महिलाओं को ही अपशब्द कहे होते है ....। शायद ये आदर्श की पराकाष्ठा ही है । हम किस संस्कृति से गुजर रहे हैं नहीं जानता किन्तु ये हमारे समाज के लिए अनुचित ही होगा ....
नेति नेति ...किन्तु समय का अभाव है क्षमा करें इसे समय होने पर पूरा करूँगा  ।

चंद्रप्रकाश बहुगुना/पंकज/माणिक्य

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