नन्हीं चिड़ियाँ .
चढ़ती जीवन की सीढ़ियां ,
पर फैलती बार-बार ...
कोशिश करती कई बार ,
माँ पर पकड़ कर उड़ना सिखाती ...
गिर कर फिर उठना सिखाती ,
नन्हें परों को वो सहलाती ..
थक जाने पर उसे सुलाती ,
नित होता यह व्यापार ...
माँ का रहता उस में प्यार ,
कई रोज घायल होता है ...
कई रोज रोकर सोता है ,
पर कोशिश करता है ...
जीवन पथ पर चलता है ,
और एक रोज वह जीतता है ...
और परिश्रम से लक्ष्य पता है .।
©® चंद्रप्रकाशबहुगुना / माणिक्य/ पंकज
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