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।। मैं मतवाला वह मधुबाला ।।

मैं मतवाला , वह मधुबाला ,
पीते हैं मधुप्याला ।
मैं मधुकर सा डोल रहा हूं ,
हर इक बस्ती हर इक सस्ती मधुशाला ।
वह मधुराक्षी पीला रही ,
   मैं मयकश सा पी रहा हूं मधुप्याला ।
मैं मदहोशी में घूम रहा हूं ,
मैं महलों वाला भी आज बना हूं बस्तीवाला ।
आज नहीं मैं उस ठेके पे जाने वाला ,
आज नहीं हूं मैं वो धनवाला ।
इल्लत मेरा मुक़द्दर ही था ,
जो जी रहा हूं हर इक प्याला ।

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रस्मे-वफा के चलते हम एक नहीं हो सकते

इन रस्में-वफा के चलते , हम एक नहीं हो सकते । राह जोहते दिन में , रातों को यादों में जगते । तुम्हारे पापा से जो बात की, उत्तर में वो भी ना बोले । तुम्हारी मम्मी जी तो मुझको निठल्ला , नाकारा क्या - क्या कहते । जग वाले तो हमको यों न मिलने देगे मुझको नीच तुमको उच्च जो कहते । सब की नज़रों में जीरो हूं प्रेयसी , तुम ही जो हीरो कहते । हर पल लबों पर नाम तुम्हारा , ज़्यादातर पक्ति लिखते । मैंने तो निर्णय किया है प्रेयसी , हम प्यार तुम्ही से करते । ये खत लिखा है तुमको रोया हूं लिखते - लिखते । इन रस्में-वफा के चलते , हम एक नहीं हो सकते ।

टापर हूँ मैं ।

मैं टापर हूँ बिहार का ..। देश का भविष्य हूँ । चाणक्य हूँ मैं । मैं ही बूद्ध हूँ । नये ज्ञान का सृजन हूँ मैं ..। मैं ही ज्ञान -विज्ञान हूँ । टापर हूँ मैं । माणिक्य बहुगुना