ज्येष्ठ का अन्तिम पक्ष था कुछ गर्मी के साथ पवन के थपेडे मानव को परेशान करने के लिए काफ़ी थे। मैं भी अपने जिन्दगी की पूँजी (स्कूल से प्राप्त कुछ उपाधि कुछ उपलब्धी ) हाथ में लिये दरदर भटक रहा था । कभी इस कम्पनी कभी उस कम्पनी । काम न मिलने की वजह से कुछ हफ्तों से टूट सा गया था । जब भी घर लौटता कुछ ताने भरी बतों को सुनकर खिनना जाता था ।
आज कमरे में लौटा तो पाता हूं कुछ पुस्तकें मुझे घूर रहीं हैं ,शिक्षा व अन्य उपलब्धियों के परिचय पत्र से भरा टेबल मुझे दुतकार रहा हैं ,माँ बापूजी के द्वारा कही गई बाते कानों में सुनाई दे रही थी ।
अचानक नज़र पड़ी हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित मधुशाला में कुछ पक्तियां गुनगुनाई और फिर शायद कुछ टूटी फूटी पंक्तियां रची कुछ रचते रचते बेसुद सो गया ......
जब अचानक किसी ने दरवाज़ा खटखटाया तो मैं अचानक से जागा ,
और बोला कौन है ?
दरवाज़े से आवाज़ आई मैं हूं ।
आवाज़ कुछ जानी पहचानी प्रतीत हो रही थी ।
दरवाज़ा खोला तो पाता हूं कोई नहीं है यह तो मात्र मेरी अचेतना के लक्षण थे ।
फिर उठकर छत में चला गया कुछ समय टहलता रहा अभी सूर्य अस्तांचल में था फिर भी अपना ताप छोड़ रहा था ,।इसलिए छत में भी कुछ गर्मी और कुछ उमस थी में अचेतन ही पुस्तकों के बीच जा बैठा क्योंकि सारा बिस्तर ही पुस्तकों से भरा पड़ा था । कुछ पुस्तकों ने मुझे घूरा कुछ मैंने पुस्तकों को .......
बीतते बीतते आज यूं ही दो मास बीत गये मेरी मानस स्थिति ज्यों की त्यों थी ।
एक दिन यूं ही मित्र के साथ दिन का प्रथम प्रहर में घूम रहा था ।
तो एक जगह क्या पाता हूं कि एक मज़दूर इतनी गर्मी में रोड के एक छोर में बैठे रोड का काम कर रहा था । इतना ही नहीं उसकी पत्नी भी अपने शिशु को वाम कोख में दबाकर अपना पत्नी होने का दायित्व निभा रही थी ।मैं कुछ देर देखता रहा और कुछ दुखी होकर अपना गन्तव्य स्थल तय किया ।
आज मेरा दिल कुछ कुन्ठित था और आपने दर्द भूलकर बस वही मंजर मेरे दृष्टपटल पर नाच रहा था ।
#CHANDRAPRAKASH
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