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।। आख़िर जिन्दगी क्या है ।।

सोचने में मजबूर करती जिन्दगी ।
आख़िर जिन्दगी क्या है ?
एक मेला है या एक खेला है ,
या जिन्दगी गुरु चेला है ।
आख़िर जिन्दगी क्या है ?
एक बबंडर है या एक खंडहर है ,
या जिन्दगी खंजर है ।
आख़िर जिन्दगी क्या है ?
अमावस की रात है या चाँद की रोशनी ,
या जिन्दगी एक दीपक की रोशनी ।
आख़िर जिन्दगी क्या है ?
वह खिट-पिट है या अंधेरा है ,
या जिन्दगी मारा मारी है ।
आख़िर जिन्दगी क्या है ?
सोचने में मजबूर करती जिन्दगी ,
आख़िर जिन्दगी क्या है ?

    चन्द्र प्रकाश बहुगुना


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