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।। कभी दिल से किसी को चाहा नहीं ।।

कभी दिल से किसी को चाहा नहीं ,
बाद चाहत की इच्छा से क्या फ़ायदा ।
मैं मधुशाला गया ,
      सुरा पान भी किया ।
सुरा पीते ही ख़्याल आ गया ।
कभी प्यार का अर्थ तो समझा नहीं ,
फिर प्यार करने से क्या फ़ायदा ।
कभी दिल से किसी को चाहा नहीं ,
बाद चाहत की इच्छा से क्या फ़ायदा ।
मैंने शादी की ,
     रस्में निभाई ।
रस्में निभाते ही ख़्याल आ गया ।
कभी रिश्तों को मैंने समझा नहीं ,
फिर रिश्ते निभाने से क्या फ़ायदा ।
कभी दिल से किसी को चाहा नहीं ,
बाद चाहत की इच्छा से क्या फ़ायदा ।
         मेरे बच्चे हुए ,
         भरण-पोषण किया
पोषण करते ही मन में ख़्याल आ गया ।
कभी बच्चों को समय दिया ही नहीं ,
फिर इनके पोषण का क्या फ़ायदा ।
कभी दिल से किसी को चाहा नहीं ,
बाद चाहत की इच्छा से क्या फ़ायदा ।
             बच्चों की शादी करी ,
              खूब पैसा लगाया ।
पैसे खरचते ही मन में ख़्याल आ गया ।
कभी बच्चों की इच्छा जानी नहीं ।
फिर इस शादी का क्या फ़ायदा ,
कभी दिल से किसी को चाहा नहीं ,
बाद चाहत की इच्छा से क्या फ़ायदा ।।

             


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