निशा के प्राण पखेरु उड़ गए रात काली में ,
कुछ वृद्ध हो चली रजनी सुबह की लाली में ।
अली करते गुंजंन हर प्रसून डाली में ,
विहग मदमस्त डोल रहे शैशव दिनकर लाली में ।
माँ नव शिशु को थपकी देती मोह की जाली में ,
माँ का स्नेह कुछ अधिक होता बाल पतंग लाली में ।
सब धर्मों को प्रकाश देता दिनकर भोर की लाली में ,
ज्यूं वृक्ष पोषण देता हर इक डाली में ।
लोग चांद तक पहुंच गये ..... मैं बचपन के खिलौनों से खेलता हूं.... लोग इतने चालाक हो गये कि मत पूछ चन्दर .... मैं अभी भी हालातों के उख...
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