।। कीचड़ में कमल । ।
भाग -एक
आज जब दिन चढ़ने लगा कुछ बेचैनी थी , क्योंकि सूर्य की गर्मी कुछ असहनीय सी लग रही थी । भोला कुछ उदास हो जाता जब भी वह स्कूल की ड्रेस पहने बच्चों को स्कूल जाते देखता इसलिए सूरज भी उसे आज बेचैन कर रहा था ज्येष्ट मास की पहली दुपहरी थी ।
भोला उन बच्चों को देख कर प्रफुल्लित भी होता और उदास भी हो जाता उन बच्चों की खादी की पेंट और कन्धे पर लटकता बैग देख कर उसका मन भी स्कूल जाने का करता लेकिन जा नहीं सकता था क्योंकि -
भोला अभी 10 साल का ही था लेकिन वह काम एक 25 वर्ष के युवक की तरह करता ,करता क्यों ना करता सारे परिवार की ज़िम्मेदारी जो उसपर थी । एक छुटकी बहन थी और माँ थी , पिताजी के साये से वंचित था भोला बाप का सुख शायद ही उसने अनुभव किया था आज तीन बरस हो गये पिताजी को गुजरे हुए । जब से पिता की मृत्यु हुई है ,तब से सारे परिवार का भरण पोषण भोला ही करता । अपने मालिक के खेतों में हल चलाने से लेकर पशु पालन और सारी देख रेख वही करता लेकिन वह अक्सर उदास हो जाता वह खुद को उन इंसानों से अलग मानने को तैयार नहीं था लेकिन उस का सेठ और सारे ब्राह्मण व क्षत्रिय वर्ण जिस नज़र से उसे देखा करते थे वह उसे समझ नहीं आता था कि उसके साथ पशु तुल्य बर्ताव किया जाता था उस का सेठ उस को उस बर्तन में खाना दिया जाता था जिस बर्तन में पशुओं को चारा दिया जाता और न ही उसका छुआ हुआ पानी कोई पीते था। वह तो अभी मासूम था ना जाति को समझता था ना ही ऊँच नीच को बस वह सब को मनुष्य समझता था ।पर समाज का बर्ताव देख कर उसे समझ नहीं आता कि इन सब के बीच मेरा क्या अस्तित्व है वह कभी कभी माँ से भी पूछता कि माँ क्या हम किसी दूसरे लोक के प्राणी हैं ? माँ कुछ नहीं बोलती केवल टका -टक पुत्र को देखी रहती और फिर कभी एकाद बार कह देती बेटा यही समाज का दस्तूर है । लेकिन भोला कहां शान्त रहने वाला वह बार -बार प्रश्न पूछता कई बार तो माँ भी ग़ुस्सा हो जाती पर वह भी था कि हर बार पूछता और कई बार घन्टो बैठ कर भगवान को कोशता ,
आज वह सुबह जल्दी उठ गया क़रीब दस बजे सेठ ने काम पर बुलाया था शायद धान की रोपाई शुरू हो गई थी ..........
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