आज पराणी उदेखी गै ,
तेरी गुलाबी जसी मुखडी मुरझा गै ।
काँ तू कोयल जसी बासेंछी ,
आज तेर बचन भली कै बैठी गै ।
तू बोट डावा बानर जसी उछलेछी ,
आज कला क़िले पछी गै ।
आख़िर तू कै की भअ ।।
उ हिमाव जस मुखड तेरो ,
सूखी डान जस देखीछ ।
आज तेरी य सूनसानी,
म कै न जचनी ।
यो रुडी तोडी लैछी ,
दो फोचिन काफव तू ।
आख़िर तू कै की भअ ।
लोग चांद तक पहुंच गये ..... मैं बचपन के खिलौनों से खेलता हूं.... लोग इतने चालाक हो गये कि मत पूछ चन्दर .... मैं अभी भी हालातों के उख...
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