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तू कै की भअ

आज पराणी उदेखी गै ,
तेरी गुलाबी जसी मुखडी मुरझा गै ।
काँ तू कोयल जसी बासेंछी ,
आज तेर बचन भली कै बैठी गै ।
तू बोट डावा बानर जसी उछलेछी ,
आज कला क़िले पछी गै ।
आख़िर तू कै की भअ ।।
उ हिमाव जस मुखड तेरो ,
सूखी डान जस देखीछ ।
आज तेरी य सूनसानी,
म कै न जचनी ।
यो रुडी तोडी लैछी ,
दो फोचिन काफव तू ।
आख़िर तू कै की भअ ।

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