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भाग -दो

                     कीचड़ में कमल
                          भाग -दो
अभी तक भोला का सूक्ष्म परिचय ही दिया था ।

प्रसंग था कि भोला आज जल्दी उठ गया क्योंकि उसे सेठ के घर धान रोपने जाना हैं ,
क़रीब दस बजे भोला सेठ दीवान सिंह के घर पहुँच गया ,दीवान सिंह बोला क्यों रे भोलूवा खाना तो खा कर आया या नहीं ?
भोला ने ना में उत्तर दिया ।
दीवान सिंह खाना ले कर आया ।  उस पात्र में जिसमें बिनुवा (बैल का नाम ) को भोजन दिया जाता है । भोला  अन्न का निरादर नहीं करना चाहता था इसलिए कुछ कहे बिना खाता गया , पर इस बर्ताव से उस का मन दुःख भी हो गया । भोजन करने के बाद उसे एक हरे पत्ते में टीका ( रौली , चन्दन और अक्षत (साबूत चावल ) ) दिया । भोला ने पहले खुद को टीका लगाया और फिर बैलों को । कुछ क्षण ठहरा सेठ के घर के पास । और फिर बिनुवा और रतिया की पूँछ पकड़ कर रोपाई के लिए खेत की तरफ़ बढ़ा ।
आज न जाने उसका मन खेत की रोपाई में बिलकुल नहीं था  । उसे रह -रह कर अपने पिता की याद आती ,क्योंकि आज से तीन चार साल पहले वह जब अपने पिता के साथ इसी खेत में आया करता था तो पिता सारा काम करते वो खेत के किनारों में बैठ कर पिता द्वारा लगाये गये पौधों को गिनता और कई बार पिता के पीने के लिए पानी ले आता ,बस यही काम था । लेकिन आज वह मात्र दस साल का था सारी ज़िम्मेदारी ही उसके कन्धों में थी ।
कुछ घन्टे काम किया फिर कुछ समय के लिए किसी वृक्ष की छाँव में बैठ गया ,  जब नींद खुली तो सामने मालिक को पाया ।
सेठ चिल्लाने लगा -
      क्यों रे भोला तुझे दो टाइम का खाना चाहिए और सौ रुपये मज़दूरी चाहिए और काम करने का चौपट इससे अच्छा तो में किसी और से काम करता , तेरी माँ तेरे बाप के मरने के बाद आई थी कि किसी और को मत रखना मेरा भोला सब काम कर देगा ।
   मैंने उसी समय गलती की थी ।
भोला सिर झुकाए चुपचाप खड़ा था उत्तर तो देना चाहता था पर क्या बोलता ? फिर अगर माँ को पता चला तो माँ नाराज हो जायेगी सोच कर कुछ नहीं बोला बस सुनता रहा ।

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