समाज विषमताऔं में पल रहा है क्यों और किस लिए कोई नहीं जानता है लेकिन ये
विषमताएँ कहीं ना कहीं समाज को अधोमुख की तरफ़ ले जाएगी ,जिससे ना तो समाज का भला होगा और ,न ही लोगों का ।
हम केवल भौतिक रूप से समृद्ध हो रहे हैं । जबकि मानसिक रूप से समृद्ध होनी की जरुरत है हमें हम नैतिक बनें लेकिन कट्टर ना बनें । इसी पर आधारित मेरा उपन्यास है जिसे मैं सिलसिला बार तरीक़े से आप सब के लिए प्रस्तुत करूँगा उपन्यास शीर्षक हीन होगा आप निर्णय करेंगे शीर्षक क्या होता है ?
और मुझे निरन्तर प्रेरित करेंगे आप मुझे आशा है .।
मेरी कथा आधुनिक प्रेम आप सब को अच्छी लगी और आप सब ने मुझे प्रतिक्रिया भी दी उसके लिए मैं तहे दिल से आभारी हूँ । उसी तरह का प्रेम इस उपन्यास के लिए भी चाहता हूँ मैं मुझे आशा है कि आप सब मुझे लिखने के लिए उत्साहित करेंगे ।
धन्यवाद ।।
माणिक्य बहुगुना / पंकज / चंद्र प्रकाश
।। सम्भावना ।। सम्भावना शब्द संस्कृत में सम उपसर्ग पूर्वक भू सत्तायाम् धातु से ण्यन्त् में ल्युट और टाप् प्रत्यय करने पर निष्पत्ति होती है । सम्भावना जीव...
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