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कीचड़ में कमल

समाज विषमताऔं में पल रहा है क्यों और किस लिए कोई नहीं जानता है लेकिन ये
विषमताएँ कहीं ना कहीं समाज  को अधोमुख की तरफ़ ले जाएगी ,जिससे ना तो समाज का भला होगा और ,न ही लोगों का ।
हम केवल भौतिक रूप से समृद्ध हो रहे हैं । जबकि मानसिक रूप से समृद्ध होनी की जरुरत है हमें हम नैतिक बनें लेकिन कट्टर ना बनें ।  इसी पर आधारित मेरा उपन्यास है जिसे मैं सिलसिला बार तरीक़े से आप सब के लिए प्रस्तुत करूँगा उपन्यास शीर्षक हीन होगा आप निर्णय करेंगे शीर्षक क्या होता है ?
और मुझे निरन्तर प्रेरित करेंगे आप मुझे आशा है .।
मेरी कथा आधुनिक प्रेम आप सब को अच्छी लगी और आप सब ने मुझे प्रतिक्रिया भी दी उसके लिए मैं तहे दिल से आभारी हूँ । उसी तरह का प्रेम इस उपन्यास के लिए भी चाहता हूँ मैं मुझे आशा है कि आप सब मुझे लिखने के लिए उत्साहित करेंगे ।
      धन्यवाद ।।
माणिक्य बहुगुना / पंकज / चंद्र प्रकाश

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रस्मे-वफा के चलते हम एक नहीं हो सकते

इन रस्में-वफा के चलते , हम एक नहीं हो सकते । राह जोहते दिन में , रातों को यादों में जगते । तुम्हारे पापा से जो बात की, उत्तर में वो भी ना बोले । तुम्हारी मम्मी जी तो मुझको निठल्ला , नाकारा क्या - क्या कहते । जग वाले तो हमको यों न मिलने देगे मुझको नीच तुमको उच्च जो कहते । सब की नज़रों में जीरो हूं प्रेयसी , तुम ही जो हीरो कहते । हर पल लबों पर नाम तुम्हारा , ज़्यादातर पक्ति लिखते । मैंने तो निर्णय किया है प्रेयसी , हम प्यार तुम्ही से करते । ये खत लिखा है तुमको रोया हूं लिखते - लिखते । इन रस्में-वफा के चलते , हम एक नहीं हो सकते ।

टापर हूँ मैं ।

मैं टापर हूँ बिहार का ..। देश का भविष्य हूँ । चाणक्य हूँ मैं । मैं ही बूद्ध हूँ । नये ज्ञान का सृजन हूँ मैं ..। मैं ही ज्ञान -विज्ञान हूँ । टापर हूँ मैं । माणिक्य बहुगुना