समाज विषमताऔं में पल रहा है क्यों और किस लिए कोई नहीं जानता है लेकिन ये
विषमताएँ कहीं ना कहीं समाज को अधोमुख की तरफ़ ले जाएगी ,जिससे ना तो समाज का भला होगा और ,न ही लोगों का ।
हम केवल भौतिक रूप से समृद्ध हो रहे हैं । जबकि मानसिक रूप से समृद्ध होनी की जरुरत है हमें हम नैतिक बनें लेकिन कट्टर ना बनें । इसी पर आधारित मेरा उपन्यास है जिसे मैं सिलसिला बार तरीक़े से आप सब के लिए प्रस्तुत करूँगा उपन्यास शीर्षक हीन होगा आप निर्णय करेंगे शीर्षक क्या होता है ?
और मुझे निरन्तर प्रेरित करेंगे आप मुझे आशा है .।
मेरी कथा आधुनिक प्रेम आप सब को अच्छी लगी और आप सब ने मुझे प्रतिक्रिया भी दी उसके लिए मैं तहे दिल से आभारी हूँ । उसी तरह का प्रेम इस उपन्यास के लिए भी चाहता हूँ मैं मुझे आशा है कि आप सब मुझे लिखने के लिए उत्साहित करेंगे ।
धन्यवाद ।।
माणिक्य बहुगुना / पंकज / चंद्र प्रकाश
प्यार है क्या ? यह प्रश्न हर किसी के मन में आता होगा । कई लोग इसे वासना के तराजू से तौलने की कोशिश करते हैं और कई केवल स्वार्थपूर्ति लेकिन ये सब हमारी गलती नहीं है आधुनिक समाज के मानव का स्वभाव है । लेकिन प्रेम/प्यार इन चीजों से काफ़ी आगे है ,उदाहरण स्वरूप आप एक कुत्ते के पिल्ले से प्यार करते हैं तो आप उस से कुछ आश रखते हो क्या ?और एक माँ से पूछना कि उस का जो वात्सल्य तुम्हारे प्रति है उस प्रेम के बदले वह कुछ चाहती है क्या ? नहीं ना तो तुम इसे स्वार्थ के तराजू से तौलने की क्यों कोशिश करते हो ? मुझे नहीं समझ आता शायद ये मुझ जैसे व्यक्ति के समझ से परे है । और प्यार हम किसी से भी करें बस उसका नाम बदल जाता है --- एक बच्चे का माँ से जो प्यार होता है वह वात्सल्य कहलाता है । किसी जानवर या अन्य प्राणी से किया प्यार दया भाव या आत्मीयता का भाव जाग्रत करता है । अपनी बहन,भाई और अन्य रिश्तों में जो प्यार होता है वह भी कहीं ना कहीं आत्मीयता के अर्थ को संजोए रखता है । और हमारा प्रकृति के प्रति प्रेम उसे तो हम शायद ही शब्दों के तराजू से तोल पाएं क्योंकि उस में कोई भी स्वार्थ नहीं है बस खोने का म
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