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बाक़ी है

हम जाना चाहते हैं छोड़ कर ...
          फिर लगता है इंतजार बाक़ी है ।
हमें नफ़रत है तुम से कहता हूँ ...
        फिर लगता है प्यार बाक़ी है ।।

दिन कट जाते हैं कामों में ..
लगता है फिर रातों को दिल का ग़ुबार बाक़ी है ।
कट जाती है जिंदगी सोम से शनिवार तक ..
फिर लगता है इतवार बाकी है ।।

हम छोड़ कर चले जाते हैं ..
जिंदगी के अहम फैसले ।
  फिर लगता है ....
      इकरार बाक़ी है ।।

प्रेम की कश्ती में ..
    में जब हम डूबने लगते हैं ।
फिर लगता है ......
      वो करार बाक़ी है ।।

कभी लगता है ...
अब नहीं रहा प्रेम जीवन में .।
कुछ पल में लगता है ..
       ऐतबार बाक़ी है ..।।

राग - द्वेष में जी लिया ..
        जीवन अब ...।
फिर लगता है ..
     जीवन से अवकाश बाकी है ।।

छोड़ना चाहता हूँ इस देह को ,
तुम को , इस जग को ।
फिर लगता है ..
इश्तिहार बाक़ी है ।।

माणिक्य बहुगुना / पंकज /चंद्रप्रकाश

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