ग़ज़ब की दुकान थी मित्रों ,
नारे बिक रहे थे ,
लोंगों की संवेदना बिक रही थी .,
दो किलो मसालेदार तोलना नेता जी ने कहा ,
क्या डालूँ दुकानदार बोला ?
नेता जी बोले क्या -क्या है ?
दुकानदार बोला - साम्प्रदायिकता , भुखमरी ,ग़रीबी का नकाब ,झूठे आँसू , इत्यादि बहुत कुछ ..।
नेताजी बोले सब तोल दो ...।
तभी प्रतिपक्षीय नेता जी आ धमके ,
गले मिले अब दोनों मानो प्रेमी कई जन्मों से हैं
कौन से ले रहे हो नारे एक नेता जी बोले .?
दूजे नेता जी ने सारी व्यथा कह सुनाई .,,
कहा अब लोग हो गये घर - घर मैं गौरी ,जयचन्द्र .
बस कुछ रोना धोना होता है ...
संवेदनाओं में हमला करना होता है .
नहीं बात बनी तो पउवा पकडाना पड़ता है ..
बस हम तो हैं भाई -भाई ...
जो भी जीते मिल -बाँटा खायेंगे ,
मैं जीता तो संसद में तुम रोना-रोना ,
बस यूँ काम चलेगा अपना ..
बस जब तक जनता हम में चिपकी है ..
कल्याण हमारा तब तक है ..
सभा - जुलूसों में आ जाते ..
खुद की पार्ट समझ कर ...
बस हमारी दुकानें चलती रहे भाया ...।।
माणिक्य बहुगुना / पंकज / चंद्र प्रकाश
।। सम्भावना ।। सम्भावना शब्द संस्कृत में सम उपसर्ग पूर्वक भू सत्तायाम् धातु से ण्यन्त् में ल्युट और टाप् प्रत्यय करने पर निष्पत्ति होती है । सम्भावना जीव...
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें