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भारतीय राजनीति

हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष ने अपने सभी सदस्यों को बुलाया और बच्चों की समस्याएँ बताई कि हिन्दी में बच्चों को कबीर , रहीमादि समझ नहीं आते और न ही वर्तमान में इसका कोई महत्व है । क्यों ना कुछ रोचक पढ़ाया जाय ?
एक महाशय बीच ही बोल दिए सनी लिओनी का संघर्ष पढ़ाया जाय तो ?
और संघर्ष दिखाया जाय तो कैसा रहेगा ?
कुछेक ने नाक - मुँह बनाये ...।
कुछ समर्थन में उतर आये ...?
और कुछेक ने अभिव्यक्ति की आज़ादी का हनन का नाम दिया । कुछेक अंशन पर बैठे ।
बात बच्चों तक पहुँची , नन्हे बच्चे रोडों में उतरे और हंगामा मचाया । बात मंत्री जी तक पहुँची । विपक्षियों ने हंगामा मचाया ..। हमें आज़ादी चाहिए विषय वस्तु बनाने की देश के हर कोने से पक्ष - विपक्ष में उतरे लोग ..।
लोग भुखमरी से मर रहे थे मंत्री जी भाषणों में अडे थे । लोकसभा , राज्यसभा में हंगामा हुआ । आजादी आज़ादी ।
कुछेक महिमामंडित करने लगे लोगों को । टी.वी. की टीआरपी बड़ी ।

माणिक्य बहुगुना

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प्रेम का सात्विक अर्थ

प्यार है क्या ? यह प्रश्न हर किसी के मन में आता होगा । कई लोग इसे वासना के तराजू से तौलने की कोशिश करते हैं और कई केवल स्वार्थपूर्ति लेकिन ये सब हमारी गलती नहीं है आधुनिक समाज के मानव का स्वभाव है । लेकिन प्रेम/प्यार इन चीजों से काफ़ी आगे है ,उदाहरण स्वरूप आप एक कुत्ते के पिल्ले से प्यार करते हैं तो आप उस से कुछ आश रखते हो क्या ?और एक माँ से पूछना कि उस का जो वात्सल्य तुम्हारे प्रति है उस प्रेम के बदले वह कुछ चाहती है क्या ? नहीं ना तो तुम इसे स्वार्थ के तराजू से तौलने की क्यों कोशिश करते हो ? मुझे नहीं समझ आता शायद ये मुझ जैसे व्यक्ति के समझ से परे है । और प्यार हम किसी से भी करें बस उसका नाम बदल जाता है --- एक बच्चे का माँ से जो प्यार होता है वह वात्सल्य कहलाता है । किसी जानवर या अन्य प्राणी से किया प्यार दया भाव या आत्मीयता का भाव जाग्रत करता है । अपनी बहन,भाई और अन्य रिश्तों में जो प्यार होता है वह भी कहीं ना कहीं आत्मीयता के अर्थ को संजोए रखता है । और हमारा प्रकृति के प्रति प्रेम उसे तो हम शायद ही शब्दों के तराजू से तोल पाएं क्योंकि उस में कोई भी स्वार्थ नहीं है बस खोने का म

।। उत्तराधिकारी ।।

।। उत्तराधिकारी ।। मेरे मरने के बाद मेरी पुस्तकें किस की होंगी ये सोच कर मैं कई मार यमराज को धोखा दे चुका हूँ । लेकिन इस बार यम के दूत चेतावनी देके गये हैं ....इस बार मरना ही होगा मुझे लेकिन अपना उत्तराधिकारी किसी बनाऊँ अपनी पुस्तकों का ये जान कर चिन्तित हो उठता हूँ । उत्तराधिकारी के लिए मैंने विज्ञापन भी निकाला लेकिन कई आये लेकिन भाग गये । बेटा बोलता है कि इस भौतिक युग मैं जहाँ सब काम कम्पयूटर से हो जाता है पुस्तकों का क्या करें । लेकिन मेरी रुह बसी है पुस्तकों में । बस अब इन पुस्तकों का उत्तराधिकारी चाहिए । क्या तुम बनोगे मेरे पुस्तकों के उत्तराधिकारी ? क्योंकि मृत्यु हर पल निकट है । माणिक्य बहुगुना

।। तुम ।।

रंगे ग़ुलाब सी तुम ... सपनों का सरताज़ सी तुम ... मैं यों ही सो जाना चाहता हूँ .. जब से सपनों में आई हो तुम .... ©®चंद्र प्रकाश बहुगुना / पंकज / माणिक्य