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दिल्ली एक अनजान शहर

दिल्ली एक अनजान शहर .
अनजाने लोग , खुलापन, अभिव्यक्ति की आजादी .
भुखमरी , गरीबी , भिखारी , अकुलाये रेड लाईट पर बच्चे माँयें ,
दिल्ली गेट का चबूतरा याद है मुझे .
एक काली सी मूरत .
कबूतरों का विश्राम स्थल .
मल से सनी हुई ..
भिखारियों की एक बहुत बड़ी ज़मात ..
घेर कर बैठते हैं चबूतरे को ..कबूतरों का झुण्ड ..
ज्वार , बाजरा .. बिखरा हुआ ..
नाम दिल्ली का द्वारा ..
उपमायें , अलंकार , नृप , शोभायें .
दरियागंज बहु आबादी क़स्बा टाइप ..
गन्दी नालियाँ , रक्त का कीचड़ ..
मांस के बदबू से विचलित मन ..
लोगों से भरा हुआ ..
दुकानें , इत्र , सड़ा हुआ ख़मीर ..
समोसे , ठेले में बिकता जानवर ..
बिकती खालें , लटकते बकरे , भेड़ ...
मक्खियों का घर ..
अच्छे लोग नमाज़ ..
मीना बाजार , शदियों की सोभा , नाम ..
जामा मस्जिद , आस्था , आनन्द , अनुकूल ..
दुकानें टायर , कुछ गाड़ियों के पार्ट ..
खजूर , सुंदर वस्त्र , अलंकार ..
लाल किला , राजाओं , शहजादों की शान ..
मुगलों का वर्चस्व ..
पुतले , तोपें , अवशेष ..
भोग - विलास .
समय का चित्रण ..
अदृश्य कोहराम ..
घोड़ों के नाल की ध्वनियाँ ..
अद्भुत शिल्प , बेजोड़ ..
हर्ष , उत्कर्ष ..
पतन , रोमांच का दृश्य ..
अविष्कार,अवशेष ..
मुझे परेसान करते महल , चित्रण ..
भारतीय संस्कृति का उत्थान , पतन ..
अंग्रेज , मुग़ल ..
द्वार के बाहर
गाड़ी
डामर की जीभ फैलाई सड़क .
क़तार , लोग , हार्न की आवाजें ..
समय की मांग , पूर्ति.
आँखों में नाचते राजाओं के रथ ,
रानियाँ , यश , जयघोष ..
महराज की जय हो ।
शाहजहाँ की जय हो ।
रौबदार चेहरा , ऑंखें ,
सेवक सारथी , नौकर चाकर ..
गर्व से फूला चेहरा ..
मालायें , यशगान ..
राजसिंहासन , मुकुट (ताज )
हाथपंखे ..
रथी , सारथी ..
पेड़ पौधे ..
न कि -
ए. सी. , बिजली
बिन पेड़ ..
अशुद्ध हवा ,पानी ..
दिल्ली का वो दृश्य ..
इंद्रधनुष सा रंगी ..
अब स्वप्न सा है लगता ..
किलकिलती गर्मी ..
लाल , पीली , हरी बसें ..
औकात , हैसियत , मेहनत ..
हजारों लोग कार्यरत ..
चिल्लाते फेरी वाले , खीरा , पानी , जलजीरा ..
स्वाद ,बीमारियाँ ...
स्टेण्ड पर गुमसुम मैं ..
अवाक् , दिग्भ्रम , असमंजस ..
अप्राकृतिक ध्वनियाँ ..
ख़तरा जीवन का ..
कुछ आवाजें ..
गणतंत्र दिवस की परेड ...
शहादतें , खून ही खून ..
जंग , खूनी जंग ..
जीवन लुटाया , घर को बचाया ..
परेड , वो जय घोष ..
शलमियाँ तोपों की ..
बंदूकें , मृत्यु का समान ..
प्रदर्शन , खूनी जंग ..
शहादत का नाम ..
भूखे नंगे लोग .
करोड़ों , अरबों की तोपें ..
विकशित देश ..
झूठा आत्मविश्वास ..
तोपें , मिसाइलें , लड़ाकू विमान ..
गूँजता आकाश ..
प्रदूषण , सहमे . डरे लोग ..
ढोल , बैंड ..
कतार में करतब दिखाते जवान ..
झांकियां , तमासबीन ..
सड़कों में पसरा आनन्द ..
हर्ष , उत्कर्ष ..
स्वर , ध्वनियाँ ..
टीवी स्क्रीन से चिपके लोग ..
देश भक्त ..
लाल किले की शहादत ..
विश्व युद्ध , कारगिल ..
इंडिया गेट ..
स्मृति चिन्ह ..
प्रधानमंत्री का भाषण ..
वी. आई. पी.प्रवेश ..
राजनीति , भाषा की गुलामी ..
देश समाज और मैं ..
दिल्ली , अख़बार ..
ख़बरों का निर्माण ..
सोची हुई ख़बरें ..
ख़बरों की जननी..
पत्रकारों के गुट ,
रूढ़ियाँ , स्वतन्त्रता , स्वच्छंदता ..
राग , द्वेष ,पूर्वाग्रह ..
अख़बारों में राजनेताओं के चर्चे ..
गुण गान , बखान ..
लोकतंत्र , राज्यसभा ..
स्पीकर , सभ्य लोग , हो हल्ला ..
दोषारोपण , जीहजूरी ..
खुद को सही सिद्ध करना ..
जेबों की चिंता ..
नोटों की चिंता ..
लोगों के वोटों की चिता
नए स्कूल में भर्ती नए बच्चे से ..
अक्षर , शब्द से दूर ..
बस रोना चिल्लाना ..
किसे चिन्ता देश को ?
नहीं पता ना ??
बिना मांस का लोकतन्त्र ..
हड्डी , रोगी ..
कभी दंगे , बलात्कार..
निर्भया ---
निर्मम , अमानवीय कृत्य ..
अँधेरी रातें ,
महिलाएँ , छोटी बच्चियां ..
अँधेरे से डरती ,चीख़ती , चिल्लाती ..
सूनसान सड़क पर लौटी थी .
मित्र सह ..
अँधेरा पसरा हुआ था डामर पर ..
टिम टिम करते बड़े बड़े बल्ब ..
जुगनों से ..
नव पीढ़ी का जोश ,
हिम्मत , ललक कुछ कर दिखाने की ..
गाड़ियों की आवाज ..
हाथ फैला कर यान रोकने का आग्रह ..
रुकी एक गाड़ी ..
कुछ मुस्टंडे बैठे थे ..
कुछ समय में ही बस चलने लगी ...
अनदेखे पथ पर ..
रश्मि की किरणों से दूर ..
चौकीदार सोये , दिल्ली सोई ..
बस एक कबूतर बचाना चाहता था उस लावण्या को ..
पर काट दिए गए ..
अदमरा फैक गए ..
खा जाते लेकिन तब देह खानी थी ..
देह को नोचा ..
वो मानव नहीं ..
जानवर भी नहीं ,
क्योंकि -
इतने कुकृत्य ..?
नहीं जानवर में
प्रेम , आसक्ति .
स्नेह ..होता है ..
देह की भूख काम होती है ...
मानव से ..
ये माँ , बहन , बेटी से नहीं जन्मे थे ,
ये सब मल से पैदा हुए थे ..
मल ही खाते थे ..
मूत्र में पले थे ..
वो क्या जानते मानवता ..?
बस बेबस छोड़ गए ..
नग्न , करहाते , चिल्लाते ..
वेदना से ..
चीर कर देह हृदय के टुकड़े ..
लेकिन वो हारी नहीं ..
भोर हुआ , खबरें चहूँ ओर .
न्यूज पेपर , टीवी ., सोशल मीडिया..
सहानुभूति , आरोप , प्रत्यारोप
तर्क , वितर्क , कुतर्क ..
लड़की ने छोटे कपडे पहने थे ..
रात को क्या कर रही थी ..
उस लड़के के साथ चक्कर था ..
वो उन को भाई कह देती ..
और ना जाने क्या ..?
ना तब किसी साहित्य कार की कलम चली .
ना सम्मान लौटे ..
राजनैतिक पार्टियों ने दुकान खोली ..
आम जन आक्रोश में , चुनाव की तैयारियां ..
भाषण जंतर मंतर में ..
नारे बजी ..
कुछ स्वार्थी ..
कुछ मानवता के नाते ..
देश की बेटियाँ सहमी , डरी ..
ढीली सरकारें ..
लोकतन्त्र चरमराया ..
उचित कानून का आभाव ..
मुजरिमों की मटर गश्ती ..
बस ये है मेरे देश का दिल ..
मैट्रो , पीने के पानी का अभाव..
दालें , सब्जियाँ , अनाज महँगे ..
राजनेताओं की बड़ी बड़ी गाड़ियां ..
जूतों का अनुसरण करते चमचे ..
फूल , तितली ..
शराब , शबाब ..
अप्सराओं में डूबी तिलस्मी दुनियाँ ..
जंतर मंतर .. एक व्यक्ति जिसे ने हिला कर रख दिया ...
ये तिलस्म ..
शायरों की गुटबाजी ..
अनशन का फायदा ..
अपनी अपनी दुकानें ..
नारे , स्वराज , पूर्णस्वराज ...
जादू , फुसलाना ..
कवि , कविता ..
पद प्रेमी , जोकर ..
संवेदन हीन ..
वृद्ध के कंधे में रायफल ..
अनेक लोग ..
अनेक पार्टियों की तरफ रुख ..
अपने , अपने राग सुर ..
कानाफूसी . चुनाव की तैयारी ..
मतदाता . पंथ , धर्म , आरक्षण ..
दलित  वोट , मुस्लिम ..
जी हजुरी , स्टिंग , रिकाडिंग ...
गठबंधन , तलाक़ ..
उछल - कूद , असक्षम ..
देश का नेतृत्व , प्रधानमंत्री पद ..
पूँजी , विज्ञापन ..
शोर गुल ...
आखिर विज्ञापन की जीत ..
पप्पू बने कई लोग ..
राजनीती है ----
जालीदार टोपी , नमाज .
अरदास , पूजा पाठ ..
चर्च मंदिर , घंटियां ..
गिरजाघर ..
हिंसा , जातिगत मतभेद ..
आरक्षण , कश्मीर , राममंदिर ..
धर्म , धर्मगुरु ..
चोर उच्चके ..
बस हम लड़ मरते हैं ..
मुजफरनगर की तरह ..
खूनी संघर्ष ,
लाल खून , पीला खून ..
इसका खून , उसका खून ..
मुस्लिम का खून , हिन्दू का खून ..
और ना जाने क्या ??
रूढ़ियाँ , विध्वंश ,
इतिहास की काली छाया..
जबरदस्ती थोपी जाती है ..
गुरुकुल , मदरसे , राजनीति ..
भाषाएँ , क्षेत्रवाद ..
तेरा मेरा ..
तेरी गीता मेरा कुरान ..
तेरे मंदिर मेरा मस्जिद ..
क्या शिक्षित हैं हम ..
बच्चियों के साथ होता कुकृत्य ..
अंधेरा ..
मौलिक ज्ञान का अभाव ..
कुछ दृश्य हरियाणा के ..
आरक्षण एक शब्द ..
आग पानी , दिल्ली ..
खून से सना शहर ..
मेहनती लोग ..
भीख माँगने का फैसला
आरक्षण , अभिशाप ..
जातियाँ ,दलित ..
ब्राह्मण , मनुवादी ..
आग में लिपटे लोग ..
बस्ती बस्ती खूनी होली ..
महिलाओं की इज्ज़त
दुकानों का माल लूटा ..
विनाश का दृश्य ...
सरकारें चुप , विपक्षी गुर्राये ..
देश अशान्त ..
लाखों की सम्पदा ध्वस्त ..
ट्रेनों का आवागमन ठप ..
पटरियों का शोरगुल बंद ..
चिड़ियों के उड़ने पर पाबन्दी ..
चीटियाँ मसल ली गई ..
दिल्ली दिल्ली के निकट ऐसे हैं हाल ..
मैं कमरे की चिटिकन लगा कर सो जाता हूँ ..
बाहरी दुनियाँ से दूर हूँ ..
एक अपनी अलग दुनियाँ .
इस बड़े शहर में
कोई आता है ..
दरवाजे पर ..
खट खट की ध्वनि से उठता हूँ ..
कौन?
रातों को नहीं सो पता हूँ ..
मेरे जैसे न जाने कितने नौजवान ..
बेरोजगारी , तंगी ..
मार सह रहे हैं ..
हजारों , लाखों ..
खाना, कपडा , पानी ..
के लिए बैचेन होंगे ..
ये राजधानी है ..
भारत का दिल ....?
या राजनैतिक दलों का अड्डा ..??

माणिक्य बहुगुना / चंद्र प्रकाश/पंकज

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