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प्रतिक्षा

               । प्रतिक्षा ।

हर पल तुम्हारी प्रतिक्षा करता हूँ ..
तुम मेरे निकट नहीं आती हो ।
क्या मैंने ही प्रेम किया था ?
तुम ने भी हजारों वादे किये थे ना ?
अब तुम क्यों भूल गए मुझे और वादों को .
लेकिन फिर भी तुम मेरे हृदय में रहती हो ।
तुम्हारे सुन्दर केश बादल से लगते हैं सुंदर .
और तुम्हारी आँखों में स्वयं कामदेव बसते हैं ।
तुम्हारी बोलने की कला मुझे प्रभावित करती है .
तुम्हारे चलने से मैं मदमस्त हो जाता हूँ ।
तुम गुस्से में पाटल (गुलाब )की कली सी लगती हो .
और जब हँसती हो तो अप्सरा सी सुंदर लगती हो ।
लेकिन अब तुम्हारा हृदय पत्थर हो गया शायद ।
पहले तुम्हारा हृदय हिम सा कठोर होकर भी पानी सा था .
तुम तो मुझे उसी क्षण भूल गई होगी .
लेकिन मैं तुम को प्रतिपल याद करता हूँ ।
और अंत में तुम्हारी तारीफ में नेति नेति कहता हूँ .
क्योंकि मेरे पास शब्द नहीं  हैं .
मेरे लिए सब कुछ हो तुम ।
मैं तुम्हारी प्रतिक्षा करता हूँ हर पल .
हर क्षण , रात -दिन .
मुझे तुम ने जूठा मान लिया ना ?
चन्द्र प्रकाश / माणिक्य /पंकज

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